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प्रथम परिशिष्ट
टगणादि कला-वृत्तभेद-पारिभाषिक शब्द सङ्कत
१. टंगण' ६ मात्रा, भेद १३
१. 55s हर २. ।।55 शशि ३. । । सूर्य' ४. ।। शक ५. ।। शेष । ६. ।। अहि ७. 5 । कमल ८. ।।।। धात' e.s। कलि १०. ।।5। चन्द्र ११. ।।।। ध्रव १२.5।।।। धर्म १३. ।।।।।। शालि' .
१. ट. ठ. ड..ढ.ण गणों की कलायें, प्रस्तार-भेद, नाम तथा पर्याय प्राकृतपैगल, वाणी
भूषण और वाग्वल्लभ में वृत्तमौक्तिक के अनुसार ही हैं किन्तु प्राकृतपैगल में ट. ठ. ड ढ. रण के स्थान पर छ, प, च, त, द गण नाम भी स्वीकृत हैं। स्वयम्भूछन्द और कविदर्पण में टादि के स्थान पर छ. प. च. त. द और प. त. ट. च. क. स्वीकृत हैं। इन दोनों ग्रंथों में केवल छः पांच, चार आदि कलाविधान ही दिए हैं किन्तु इनके प्रस्तार-भेद, नाम तथा पर्याय की सूची नहीं है। हेमचन्द्रीय छन्दोनुशासन में ष. प. च.
त. द गण और प्रस्तार भेद दिये हैं किन्तु नामादि की सूची नहीं है। . २. वाणीभूषण और वाग्वल्लभ में हर के स्थान पर शिव है। ३. सूर्य के स्थान पर प्राकृतपैगल में सूर, वाणीभूषण में दिनपति, और वाग्वल्लभ में
दिनेश्वर है। ४. शक्र के स्थान पर वाणीभूषण में सुरपति और वाग्वल्लभ में सुरेश है । ५. कमल के स्थान पर वाणीभूषण और वाग्वल्लभ में सरोज है । ६. धातृ के स्थान पर प्राकृतपंगल में ब्रह्मा और वाग्वल्लभ में धाता है । ७. शालि के स्थान पर प्राकृतपैगल, वाणीभूषण और वाग्वल्लभ में शालिकर है ।