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द्वितीय परिशिष्ट
(क) मात्रिक छन्दों का प्रकारानुक्रम - इसमें मात्रिक छन्द ७६ और गाथा, स्कन्धक, दोहा, रोला, रसिका, काव्य और षट्पद आदि के २१८ भेदों के नामों को अकारानुक्रम से दिया है ।
वृत्तमौक्तिक
(ख) वर्णिक छन्दों का प्रकारानुक्रम - इसमें वर्णिक सम-छन्द, प्रकीर्णक, दण्डक, अर्द्धसम, विषम और वैतालीय छन्दों का एवं टिप्पणियों में उद्धृत छन्दों का अकारानुक्रम दिया है । छन्दों के प्रागे ( ) कोष्ठक में प्रकीर्णक का प्र, दण्डक का द, अर्द्धसम का अ, विषम का वि, वैतालीय का वे और टिप्पणी का टि. दिया है । संकेत- कोष्ठक में ग्रन्थकार ने जो छन्दों के नाम-भेद दिये हैं वे भी अकारानुक्रम में सम्मिलित हैं, वे नाम-भेद भी ( ) कोष्ठक में दिये हैं ।
(ग) विरुदावली - छन्दों का चण्डवृत्त - विरुदावली आदि समस्त तृतीय परिशिष्ट
अकारानुक्रम -- इसमें कलिका- विरुदावली, विरुदावली - छन्दों का प्रकारानुक्रम दिया है ।
( क ) पद्यानुक्रम - इसमें प्रतिपाद्य विषय के पद्यों और छन्द के लक्षण-पद्यों को अकारानुक्रम से दिया है । वैतालीय - प्रकरण की लक्षण - कारिकायें भी इसी में अकारानुक्रम से सम्मिलित कर दो गई हैं ।
(ख) उदाहरण-पद्यानुक्रम - इसमें ग्रन्थकार द्वारा स्वरचित उदाहरण, पूर्ववर्ती कवियों के प्रत्युदाहरण, गद्यांश के उदाहरण और टिप्पणियों में उद्धृत उदाहरण अकारानुक्रम से दिये हैं । गद्यांश के लिये कोष्ठक ( ) में ग, और टिप्पणी के लिये टि. का संकेत दिया है । यति प्रकरण में उद्धृत प्रोर विरुदावली में प्रयुक्त एक-एक चरण के पद्यों को भी अकारानुक्रम में सम्मिलित किया गया है ।
चतुर्थ परिशिष्ट
क. (१) मात्रिक छन्दों के लक्षण एवं नाम - भेद - प्रारंभ में सन्दर्भ-ग्रन्थसूची और संकेत देकर वृत्तमौक्तिक के अनुसार छन्द-नाम और उसके टगणादि में लक्षण एवं प्रतिचरण की मात्रायें दी हैं। पश्चात् सन्दर्भ-ग्रन्थ-सूची के २२ ग्रन्थों के साथ छन्द-नाम और लक्षणों की तुलना की गई है। जिन-जिन ग्रन्थों में वृत्तमौक्तिक लक्षण-सम्मत छन्द का वही नाम है तो उन ग्रन्थों के अंक दे दिये हैं और लक्षण यही होते हुये भी नाम यदि पृथक् है तो वह नाम-भेद देकर