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भूमिका
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पत्र संख्या ३८; पंक्ति ७; अक्षर ३७. लेखनकाल १६६० वि० लेखक - लालमनि मिश्र
लेखन स्थान - अर्गलपुर (आगरा) शुद्ध एवं संशोधित. पूर्णप्रति. एकमात्र प्रति लेखन-प्रशस्ति इस प्रकार है :
॥ संवत् १६६० समये भाद्रपददि३ भौमे शुभदिने अर्गलपुरस्थाने लिखितं लालमनिमिश्रेण । शुभं भूयात् । श्रीविष्णवे नमः ॥" वृत्तमौक्तिकदुर्गमबोध टी० महोपाध्याय मेघविजय
महोपाध्याय विनयसागर संग्रह, कोटा, पोथी २३, प्र.नं. ११ माप २५.५ c.m.x१०.७ c.m. पत्रसंख्या १०; पंक्ति २१; अक्षर ६० लेखनकाल १८वीं शती. टीकाकार - महोपाध्याय मेघविजय द्वारा स्वयं लिखित. शुद्ध एवं संशोधित एकमात्र प्रति. पत्र २-५ तक प्रस्तार चित्र.
___ सम्पादन-शैली सम्पादन में प्रथम खण्ड की तीनों प्रतियों को क, ख, ग और द्वितीय-खण्ड की दोनों प्रतियों को क, ख, संज्ञा प्रदान की है।
प्रथमखण्ड की ख. संज्ञक प्रति और द्वितीयखण्ड की क. संज्ञक प्रति एक ही व्यक्ति की लिखी हुई और प्रथमखण्ड की क. संज्ञक और द्वितीयखण्ड की ख. संज्ञक प्रति संभवत: इसी प्रति की प्रतिलिपि हो; क्योंकि दोनों में अतीव सामीप्य होने से विशेष पाठ-भेद प्राप्त नहीं होते। __ दोनों खण्डों की क. संज्ञक प्रति को मैंने आदर्श माना है और अन्य प्रतियों के पाठभेदों को मैंने टिप्पणी में पाठान्तर-रूप में दिये हैं। कतिपय स्थलों पर प्रतिलिपिकार के भ्रम से जो अंश या. पंक्तियां क. संज्ञक प्रति में छूट गई हैं वे ख. संज्ञक प्रति से मूल में सम्मिलित कर दी गई हैं और कतिपय शब्द ख. प्रति के शुद्ध होने से उसे मूल में रखकर क. प्रति के पाठ को पाठान्तर में दे दिया है ।
ग्रंथकार ने प्रत्युदाहरणों और नामभेदों में जिन ग्रंथों का उल्लेख किया है उन ग्रंथों के स्थल, सर्गसंख्या और पद्यसंख्या टिप्पणी में दी गई हैं और जिन प्रत्यु.