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१. पुरुषोत्तम, ७. शाक, ११, कल्पद्रुम, १२. कन्दल, १३. अपराजित, १४. नर्त्तन, १५. तरत्समस्त, १६. वेष्टन, १७. अस्खलित और १६. समग्र । पल्लवित - नामक विरुदावली गोविन्दविरुदावली में नहीं है । चन्द्रशेखरभट्ट ने इसका प्रत्युदाहरण गोविन्दविरुदावली में प्रदत्त फुल्लाम्बुज के उदाहरणस्थ अंश का दिया है।
वृत्तमौक्तिक
वृत्त मौक्तिक में चण्डवृत्त के ३४ भेद, त्रिभंगी - कलिका के ३ भेद और विरुदावली के तीन भेद माने हैं जब कि गोविन्दविरुदावली में इनका वर्गीकरण इस प्रकार है—
चण्डवृत्त - कलिका के दो भेद हैं- १. नख और २. विशिख । -
नख के भेद हैं - १. वर्धित, २. वीरभद्र, ३. समग्र, ४. अच्युत, ५. उत्पल ६. तरङ्ग, ७. गुणरति, ८ मातंगखेलित और 8 तिलक ।
विशिख के ११ भेद हैं—१. पङ्केरुह, २. सितकञ्ज, ३. पाण्डूत्पल, ४. इन्दीवर, ५. अरुणाम्भोरुह, ६. फुल्लाम्बुज, ७. चम्पक, ८. वञ्जुल, ६. कुन्द, १०. बकुलभासुर और ११. बकुलमंगल ।
द्विगादिगणवृत्त - कलिका मंजरी के तीन भेद हैं- १. मञ्जरी - कोरक, २.
गुच्छ और ३. कुसुम ।
त्रिभंगी - कलिका
के दो भेद हैं- १. दण्डक त्रिभंगी - कलिका और २. विदग्ध - त्रिभंगी - कलिका ।
मिश्रकलिका के ४ भेद हैं- १. मिश्राकलिका, २ साप्तविभक्तिकी कलिका, ३ . अक्षमयी - कलिका और ४. सर्वलघु-कलिका ।
इस प्रकार गोविन्दविरुदावली में विरुदावली के कुल २६ भेदों का दिग्दर्शन है तो वृत्तमौक्तिक में ४० विरुदावलियों और ३४ कलिकानों का निरूपण है ।
वृत्तमौक्तिक में उद्धत प्राप्त ग्रन्थ
प्रस्तुत ग्रंथ में चन्द्रशेखरभट्ट ने छन्दों के प्रत्युदाहरण देते हुए जिन-जिन ग्रन्थकारों और जिन-जिन ग्रन्थों का उल्लेख किया है उनमें से कतिपय ग्रन्थ अद्यावधि प्राप्त हैं । श्रप्राप्त ग्रन्थों की अक्षरानुक्रम से तालिका इस प्रकार है
संख्या
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ग्रन्थ-नाम
उदाहरणमञ्जरी
ग्रन्थकार
लक्ष्मीनाथ भट्ट
उल्लेख-पृष्ठाङ्क
१०,१३,१६ श्रादि