________________
भूमिका
[ ७७
+
+
+
F
द्विजगणमाहर, भगणमुपाहर ।। द्विजमिह धारय, भमनु च कारय । भणति सुवासकमिति गुणनायक ।।५६।।। भवति सुवासकमिति गुणलासक ॥७२।।
+ विनिधेहि चतुः सगणं रुचिरं,
यदि वै लघुयुग्मगुरुक्रमतः रविसंख्यकवर्णकृतं सुचिरम् ।
रविसम्मितवर्ण इह प्रमितः । फणिनायकपिङ्गलसंभणितं
अहिभूपतिना फणिना भणितं कुरु तोटकवृत्तमिदं गरिणतम् ।।१३५।। सखि तोटकवृत्तमिदं गणितम् ।।१६६॥
+ पादयुगं कुरु नूपुरसंयुत
पादयुगं कुरु नूपुरराजितमत्र करं वररत्नमनोहर,
मत्र करं वररत्नमनोहर, वज्रयुगं कुसुमद्वयसंगत
वज्रयुगं कुसुमद्वयसङ्गतकुण्डलगन्धयुगं समुपाहर ।
कुण्डलगन्धयुगं समुपाहर । पण्डितमण्डलिकाहृतमानस
पण्डितमण्डलिकाहृतमानसकल्पितसज्जनमौलिरसालय,
कल्पितसज्जनमौलिरसालय, पिङ्गलपन्नगराजनिवेदित
पिंगलपन्नगराजनिवेदितवृत्तकिरीटमिदं परिभावय ॥२२१।। वृत्तकिरीटमिदं परिभावय ॥५८१॥ +
+ वाणीभूषण की अपेक्षा वृत्तमौक्तिक में निम्नलिखित विशेषतायें पाई जाती हैं :
(१) वाणीभूषण में केवल ४३ मात्रिक छन्द हैं जब कि वृत्तमौक्तिक में ७६ मूल छन्द और २०६ छन्द-भेद हैं। निम्न छन्दों का प्रयोग वाणीभूषणकार ने नहीं किया है :
रसिका, काव्य, उल्लाल, चौबोला, मुल्लणा, शिखा, दण्डकला, कामकला, हरिगीतं के भेद और पंचम सवैया-प्रकरण तथा छठा गलितक-प्रकरण के पूर्ण छन्द ।
(२) गाथा, स्कन्धक, दोहा, रोला, रसिका, काव्य, और षट्पद के प्रस्तारभेद, नाम एवं लक्षण तथा रड्डा छन्द के सातों भेदों के लक्षण वाणीभूषण में नहीं हैं।
(३) वाणीभूषण में ११२ समवणिक छन्द हैं जब कि वृत्तमौक्तिक में २६५ छन्द हैं। इसका वर्गीकरण चतुर्थ परिशिष्ट (ख) में देखा जा सकता है।