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वृत्तमौक्तिक
विरुतललितं संबिभ्राणं पदान्तगनूपुरं
रसजलनिधिश्चिछन्ना नागप्रिया हरिणी मता ॥४१८ ॥
[ पृ० १३७ ]
हरिणी नामक छंद १७ वर्णों का होता है । इसमें द्विज = । । । ।, रस = 1, कर्णद्वन्द्व = ऽ ऽ ऽ ऽ, कुण्डल = 5, कुच = IS 1, पुष्प = 1, हार = 5, विरुत = 1, नूपुर = 5 होते हैं अर्थात् इस छंद में, नगण, सगण मगरण, रगण, सगण, लघु और गुरु होते हैं । ६, ४ र ७ पर यति होती है ।
५. विशुद्ध मगणादिगणों का प्रयोग
कुरु नगणयुगं धेहि तं भगणं ततः,
प्रतिपदविरतौ भासते रगणोऽन्ततः ।
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मुनिरचितयतिर्नागराज फणिप्रिया,
सकलतनुभृतां मानसे लसति प्रिया ॥ ३६६ ॥ । [ पृ० १२७ ] १५ वर्ण के प्रियाछन्द का लक्षण है-नगण, नगण, तगण, भगण और रगण । ७ र ८ पर यति होती है ।
६. पारिभाषिक और मगणादिमिश्र का प्रयोग
पूर्व कर्णत्रित्वं कारय पश्चाद्धेहि भकारं दिव्यं,
हारं प्रोक्तं धारय हस्तं देहि मकारं चान्ते | रन्धैर्वर्णेविश्रामं कुरु पादे नागमहाराजोक्तं,
मञ्जीराख्यं वृत्तं भावय शीघ्रं चेतसि कान्ते स्वीये ॥ ४४३|| [ पृ० १४३ ]
१८ अक्षरों के मञ्जीराछन्द का लक्षण है :- कर्णत्रित्वं = sssss s भकार = s । ।, हारं वह्नि = 5, हस्तं : =s, और मकार = sss; श्रर्थात् इसमें मगण, मगण, भगण, मगरण, सगण और मगण होते हैं । यति ६-६ पर है ।
इस पारिभाषिक शब्दावली के कारण यह सत्य है कि वृत्तरत्नाकर, छंदोमञ्जरी और श्रुतबोध की तरह वह बाल- सरलता अवश्य हो नहीं रही किन्तु इसके सफल प्रयोग से इस ग्रंथ में जैसा शब्दमाधुर्य, भाषा की प्राञ्जलता, रचनासौष्ठव और लालित्य प्राप्त होता है वैसा उन ग्रंथों में कहाँ है ?
२. विशिष्ट छन्द -
वृत्तमौक्तिक में जिन छंदों के लक्षण एवं उदाहरण ग्रन्थकार ने दिये हैं उनमें से कतिपय छंद ऐसे हैं जिनका पृष्ठ ४९४ पर दी हुई सन्दर्भ-ग्रंथ