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भूमिका
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स्वरचित एवं अन्य कवियों के उदाहरण प्राप्त हैं। नाट्यशास्त्र, वाणीभूषण और वृत्तमुक्तावली में ग्रन्थकार रचित उदाहरण प्राप्त हैं ।
प्रस्तुत ग्रन्थ की रचना-शैली हमें दो रूपों में प्राप्त होती है-१. पूर्णपद्यशैली और २. कारिकाशैली। प्रारम्भ से द्वितीय-खण्ड के विषमवृत्तप्रकरण तक मात्रिक एवं वणिक छन्दों के लक्षण पूर्णपद्यशैली में हैं जिससे छन्द का लक्षण और यति आदि का विश्लेषण विशद और सरल रूप में हो गया है । वैतालीय छन्द तथा विरुदावली-खण्डावली-प्रकरण कारिकाशैली में होने से विषय को स्पष्ट करने के लिये ग्रन्थकार ने व्याख्या का आधार लिया है। यह हम पहले ही कह आये हैं कि ग्रन्थ के मूललेखक चन्द्रशेखर भट्ट का स्वर्गवास द्वितीय-खण्ड के रचनाकाल के मध्य में हो गया था और तदुपरान्त उसकी इच्छा के अनुसार उनके पिता लक्ष्मीनाथ भट्ट ने ग्रन्थ को पूर्ण करने का कार्य पूर्ण मनोयोग के साथ अपने हाथ में लिया था। पंचम प्रकरण में तो उन्होंने जैसे तैसे ही लक्षण स्पष्ट करने के लिये पद्यशैली को अपनाये रखनेका प्रयास किया प्रतीत होता है परन्तु छठे प्रकरण (वैतालीय) पर आते ही दोनों लेखकों के व्यक्तित्व की भिन्नता का प्रतिबिम्ब हमें शैलीगत भिन्नता में मिल जाता है, क्योंकि यहां से लेखक ने कारिका-शैली को इस कार्य के लिये सुविधाजनक समझ कर अपना लिया है और अन्त तक उसी का निर्वाह उन्होंने किया है ।
कवि ने स्वप्रणीत मुक्तक पद्यों के माध्यम से ही समग्र छन्दों के उदाहरण दिये हैं । प्रत्युदाहरणों में अवश्य ही पूर्ववर्ती कवियों के पद्य उद्धृत किये हैं। हां, विरुदावलीप्रकरण में स्वप्रणीत उदाहरण एक-एक चरण के ही दिये हैं।
लक्षणों के सीमित दायरे में बद्ध रहने पर भी पारिभाषिक शब्दावली के माध्यम से छन्दों के अनुरूप ही शब्दों का चयन कर कवि ने जो लयात्मक सौन्दर्य, माधुर्य और चमत्कार का सृजन किया है वह अनूठा हैं । यथापूर्णपद्यशैलो का उदाहरणहारद्वयं स्फुरदुरोजयुतं दधाना,
हस्तं च गन्धकुसुमोज्ज्वलकंकणाढयम् । पादे तथा सरुतपुरयुग्मयुक्ता,
चित्ते वसन्ततिलका किल चाकसीति ॥२६७॥ [ पृ० ११३ ] कारिकाशैली का उदाहरण----
अस्य युग्म रचिताऽपरान्तिका ॥२७॥