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भूमिका
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इस प्रकार तालिकानुसार उक्त प्रकरण में कुल २६५ छन्द हैं, उदाहरण २६५ हैं, प्रत्युदाहरण ८७ हैं और नामभेद ५० हैं ।
२. प्रकीर्णक- वृत्त प्रकरण :
इस प्रकरण में ग्रन्थकार ने पिपीडिका, पिपीडिकाकरभ, पिंपीडिकापणव और पिपीडिकामाला नामक छन्दों के लक्षण की एक प्राचीन प्राचार्यों की संग्रह - कारिका दी है । स्वयं के स्वतन्त्र लक्षण एवं उदाहरण नहीं हैं । पश्चात् द्वितीय त्रिभंगी और शालूर नामक छन्दों के लक्षण एवं उदाहरण दिये हैं ।
३. दण्डक - प्रकरण :
इस प्रकरण में चण्डवृष्टिप्रपात, प्रचितक, अर्ण, सर्वतोभद्र, अशोकमञ्जरी, कुसुमस्तबक, मत्तमातङ्ग और अनङ्गशेखर नामक दण्डक वृत्तों के लक्षण सहित उदाहरण दिये हैं । ग्रन्थविस्तार भय से अन्य प्रचलित दण्डकवृत्तों के लिये लक्ष्मीनाथ भट्ट रचित पिंगलप्रदीप देखने के लिये आग्रह किया है ।
प्रचितक दण्डक का लक्षण ग्रन्थकार ने छन्दः सूत्रानुसार दो नगण श्रीर ८रगण दिया है जो कि छन्दःसूत्र और वृत्तमौक्तिक के अनुसार 'अर्ण' दण्डक का भी लक्षण है । छन्दः सूत्र के अतिरिक्त समस्त छन्दः शास्त्रियों ने प्रचितक का लक्षण दो नगण, सात यगण स्वीकार किया है । ग्रन्थकार ने इस लक्षण के दण्ड को सर्वतोभद्र दण्डक लिखा है । यही कारण है कि प्राचार्यों के मतों को ध्यान में रख कर ही 'एतस्यैव अन्यत्र 'प्रचितक' इति नामान्तरम्" लिखा है । ४. अर्धसमवृत्त प्रकररण :
जिस छन्द में चारों चरणों लक्षण समान हों वह समवृत्त कहलाता है; जिस छन्द के प्रथम और तृतीय चरण तथा द्वितीय और चतुर्थ चरण एक सदृश हों वह अर्धसमवृत्त कहलाता है और जिस छन्द के चारों चरणों के लक्षण विभिन्न हों वह विषमवृत्त कहलाता है ।
इस अर्धसमवृत्त प्रकरण में पुष्पिताग्रा, उपचित्र, वेगवती, हरिणप्लुता, अपरवक्त्र, सुन्दरी, भद्रविराट् केतुमती, वाङ्मती और षट्पदावली नामक छन्दों के लक्षण एवं उदाहरण दिये हैं । पुष्पिताग्रा के तीन, अपरवक्त्र और सुन्दरी के एक-एक प्रत्युदाहरण भी दिये हैं । षट्पदावली का उदाहरण नहीं दिया है ।
१. वृत्तमौक्तिक पृ. १८५ ।