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(२) चण्डवृत्त श्रवान्तर - प्रकरण
महाकलिकाचण्डवृत्त के दो भेद हैं :- १. सलक्षण और २. साधारण । २. संकीर्णसलक्षण
सलक्षण चण्डवृत्त के तीन भेद हैं। और ३. गर्भितसलक्षण ।
वृत्तमक्तिक
: -- १. शुद्ध सलक्षण,
शुद्ध सलक्षण चण्डवृत्त के २० भेद हैं :- १. पुरुषोत्तम, २. तिलक, ३. अच्युत, ४. वर्द्धित, ५. रण, ६. वीर, ७. शाक, ८. मातङ्गखेलित, ६. उत्पल, १०. गुणरति, ११. कल्पद्रुम, १२. कन्दल, १३. अपराजित, १४. नर्त्तन, १५. तरत्समस्त, १६. वेष्टन, १७. अस्खलित, १८. पल्लवित, १६. समग्र और २० तुरग ।
संकीर्णसलक्षण-चण्डवृत्त के ५ भेद हैं : : - १. पङ्केरुह, २. सितकञ्ज, ३. पाण्डुत्पल, ४. इन्दीवर और ५. प्ररुणाम्भोरुह ।
गर्भितसलक्षण-चण्डवृत्त के ६ भेद हैं :- १. फुल्लाम्बुज, २. चम्पक, ३. वंजुल, ४. कुन्द, ५. बकुलभासुर, ६ . बकुलमंगल, ७. मञ्जरीकोरक, ८. गुच्छक और 8. कुसुम ।
भेदकथन के पश्चात् रचना - वैशिष्ट्य में प्रयुक्त मधुर, श्लिष्ट, संश्लिष्ट, शिथिल और ह्रादि की परिभाषा और इनका विवेचन करते हुये उपर्युक्त ३४ महाकलिका- चण्डवृत्तों के क्रमशः लक्षण एवं उदाहरण दिये हैं । लक्षण पूर्ण पद्यों में न होकर खण्डपद्यों में करिका-रूप में हैं और इन लक्षणों को स्पष्ट करने के लिये व्याख्या भी दी है । ग्रंथकार ने ग्रंथ-विस्तार के भय से प्रत्येक चण्डवृत्त के उदाहरण में एक-एक चरणमात्र दिया है।
श्रीरूप गोस्वामिप्रणीत गोविन्दविरुदावली से निम्नलिखित चण्डवृत्तों के प्रत्युदाहरण दिये हैं: :- १. तिलक, २. अच्युत, ३. वर्द्धित, ४. रण, ५. वीर, ६. मातंगखेलित, ७. उत्पल, ८. गुणरति, ६. पल्लवित, १०. तुरंग, ११. पंके - रुह, १२. सितकंज, १३. पाण्डुत्पल, १४. इन्दीवर, १५ प्ररुणाम्भोरुह, १६. फुल्लाम्बुज, १७. चम्पक, १८. वंजुल, १६. कुन्द, २०. बकुलभासुर, २१. बकुलमंगल, २२. मञ्जरीकोरक, २३. गुच्छ और २४. कुसुम ।
वीर का वीरभद्र, ररण का समग्र और तुरंग का तुरंग नामभेद भी दिया है। (३) त्रिभंगी - कलिका- श्रवान्तर- प्रकरण
विरुदसहित दण्डक - त्रिभंगी - कलिका, विरुदसहित सम्पूर्णा विदग्धत्रिभंगीकलिका और मिश्रकलिका के लक्षण एवं उदाहरण दिये हैं। लक्षण - कारिकाओं