________________
६० ]
वृत्तमक्तिक
है । मंत्री, अनुप्रासाभाव, दौर्बल्य, कलाहति, साम्प्रत, हतौचित्य, विपरीतयुत, विशृंखल और स्खलत्तालनामक दोषों के लक्षण एवं उदाहरण देते हुये कहा है कि इन नव दोषों को जो विद्वान् नहीं जानता है और काव्य रचना करता है वह तमोलोक में उलूक होता है अर्थात् काव्य में इन दोषों का त्याग अनिवार्य है । १२. श्रनुक्रमणी प्रकरण
रविकर, पशुपति, पिंगल एवं शम्भु के छंदःशास्त्रों का अवलोकन कर चंद्रशेखर भट्ट ने वृत्तमौक्तिक की रचना की है ।
यह प्रकरण दो विभागों में विभक्त है । प्रथम विभागों ४० पद्यों का है जिसमें प्रथम खण्ड की अनुक्रमणिका दी है और द्वितीय विभाग १८८ पद्यों का है जिसमें द्वितीय खंड की अनुक्रमणिका दी है ।
प्रथम खण्डानुक्रम - इसमें मात्रावृत्त नामक प्रथम खंड के छहों प्रकरणों विस्तृत सूची है । प्रत्येक छंद का क्रमशः नाम दिया है और अंत में छंदसंख्या भेदों सहित २८८ दिखलाई है |
द्वितीय खण्डानुक्रम : - प्रथम प्रकरण में प्ररूपित अक्षरानुसार अर्थात् एक से छब्बीस अक्षर पर्यन्त छंदों के क्रमशः नाम, नामभेद और प्रस्तारभेद के साथ सूची दी है और अंत में प्रस्तारपिंड की संख्या देते हुये उल्लिखित २६५ छंदों की संख्या दी है । द्वितीय प्रकरण से छठे प्रकरण तक की सूची में छंदनाम और नामभेद दिये हैं । सप्तम यतिप्रकरण का उल्लेख करते हुये आठवें गद्य प्रकरण के भेदों का सूचन किया है और नवम तथा दसवें प्रकरण के समस्त छंदों के नाम और नामभेद दिये हैं एवं ग्यारहवें दोष प्रकरण का उल्लेख किया है ।
अंत में दोनों खंडों के प्रकरणों की संख्या देते हुये उपसंहार किया है । ग्रन्थकृत्प्रशस्ति
वि०सं० १६७६ कार्तिकी पूर्णिमा को वसिष्ठवंशीय लक्ष्मीनाथ भट्ट के पुत्र चंद्रशेखर भट्ट ने इसकी ( द्वितीय खंड ) रचना पूर्ण की है। प्रशस्तिपद्य ८ एवं 8 में लिखा है कि चंद्रशेखर भट्ट का स्वर्गवास हो जाने के कारण इस ग्रंथ की पूर्णाहुति लक्ष्मीनाथ भट्ट ने की है ।
/
ग्रन्थ का वैशिष्ट्य
प्रस्तुत ग्रंथ का छंदः शास्त्र की परम्परा में एक विशिष्ट स्थान है। इसी ग्रंथ के पृष्ठांक ४१४ में उल्लिखित छंदः शास्त्र के १६ ग्रंथ और दो टीका-ग्रंथों के साथ