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वृत्तमौक्तिक
१. कलिका-प्रकरण, २. चण्डवृत्त-प्रकरण, ३. त्रिभंगीकलिका-प्रकरण, ४. साधारण चण्हवृत्त-प्रकरण और ५. विरुदावली । (१) द्विगादिकलिका-अवान्तर-प्रकरण ___ कलिका के नव भेद माने हैं :-१. द्विगा-कलिका, २. रादिकलिका, ३. मादिकलिका, ४. नादिकलिका, ५. गलादिकलिका, ६. मिश्राकलिका, ७. ७. मध्याकलिका, ८. द्विभङ्गीकलिका और ६. त्रिभङ्गीकलिका । ७. मध्याकालिका के दो भेद हैं।
त्रिभंगी-कलिका के भी ६ भेद माने हैं :-१. विदग्धत्रिभङ्गी-कलिका, २. तुरगत्रिभङ्गी-कलिका, ३. पद्यत्रिभंगी-कलिका, ४. हरिणप्लुतत्रिभंगी-कलिका, ५. नर्त्तकत्रिभंगी-कलिका, ६. भुजंगत्रिभंगी-कलिका, ७. त्रिगतात्रिभंगी-कलिका, ८. वरतनुत्रिभंगी-कलिका और ६ द्विपादिका-युग्मभंगा कलिका।
त्रिगतात्रिभंगी-कलिका के दो भेद हैं :-१. ललिता-त्रिगता-त्रिभंगीकलिका और २. वल्गिता-त्रिगता-त्रिभंगी-कलिका। वरतनु-त्रिभंगी-कलिका के भी दो भेद माने हैं।
द्विपादिका-युरमभंगा-कलिका के ६ भेद माने हैं :-१. मुग्धा-द्विपादिका युग्मभंगा-कलिका, २. प्रगल्भा-द्विपादिका-युग्मभंगा-कलिका, ३. मध्या-द्विपादिका-युग्मभंगा-कलिका, ४. शिथिला-द्विपादिका-युग्मभंगा-कलिका, ५. मधुरा द्विपादिका-युग्मभंगा-कलिका और ६. तरुणी-द्विपादिका-युग्मभंगा-कलिका। इसमें मध्या-द्विपादिका-युग्मभंगा कलिका के भी चार भेद माने हैं।
इस प्रकार मूलभेद ६ और प्रतिभेद २५ कुल ३४ कलिकामों के लक्षण और उदाहरण ग्रंथकार ने दिये हैं। लक्षण पूर्णपद्यों में नहीं हैं किन्तु पद्य के टुकड़ों में कारिका रूप में हैं। इन लक्षणों को स्पष्ट करने के लिये टीका भी दी है। उदाहरण के भी पूर्णपद्य नहीं हैं किन्तु प्रत्येक उदाहरण के लिये केवल एक चरण दिया है । मध्याकलिका का उदाहरण नहीं दिया है । यथा