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भूमिका
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के लक्षण एवं उदाहरण नहीं दिये हैं। इनके उदाहरणों के लिये स्वपितृ-रचित ग्रन्थ' को देखने का संकेत किया है।
१२ अक्षर-पापीड, भुजङ्गप्रयात, लक्ष्मीधर, तोटक, सारंगकं, मौक्तिकदाम, मोदक, सुन्दरी, प्रमिताक्षरा, चन्द्रवर्त्म, द्रुतविलम्बित, वंशस्थविला, इन्द्रवंशा, वंशस्थविला-इन्द्रवंशा-उपजाति, जलोद्धतगति, वैश्वदेवी, मन्दाकिनी, कुसुमविचित्रा, तामरस, मालती, मणिमाला, जलधरमाला, प्रियंवदा, ललिता, ललितं, कामदत्ता, वसन्तचत्वर, प्रमुदितवदना, नवमालिनी और तरलनयन नामक छन्दों के लक्षण एवं उदाहरण हैं ।
आपीड का विद्याधर, लक्ष्मीधर का स्रग्विणी, वंशस्थविला का वंशस्थविलं और वंशस्तनितं, मन्दाकिनी का प्रभा, मालती का यमुना, ललिता का सुललिता, ललितं का ललना और प्रमुदितवदना का प्रभा, ये नामभेद दिये हैं । ___ सुन्दरी, प्रमिताक्षरा, चन्द्रवर्त्म, द्रुतविलम्बित, इन्द्रवंशा, मन्दाकिनी और मालती के प्रत्युदाहरण भी दिये हैं, जिसमें द्रुतविलंबित और मालती के प्रत्युदाहरण दो-दो हैं।
१३ अक्षर-वाराह, माया, तारक, कन्द, पङ्कावली, प्रहर्षिणी रुचिरा, चण्डी, मजुभाषिणी, चन्द्रिका, कलहंस, मृगेन्द्र मुख, क्षमा, लता, चन्द्रलेख, सुद्युति, लक्ष्मी और विमलगति नामक छन्दों के लक्षण एवं उदाहरण हैं । माया का मत्तमयूर, मजुभाषिणी का सुनन्दिनी तथा प्रबोधिता, चन्द्रिका का उत्पलिनी, कलहंस का सिंहनाद तथा कुटज, और चन्द्रलेखं का चन्द्रलेखा नामभेद दिये हैं । माया के ५, तारक, प्रहर्षिणी और चन्द्रिका के एक-एक प्रत्युदाहरण भी दिये हैं।
१४ अक्षर-सिंहास्य, वसन्ततिलका, चक्र, असम्बाधा, अपराजिता, प्रहरणकलिका, वासन्ती, लोला, नान्दीमुखी, वैदर्भी, इन्दुवदनं, शरभी, अहिधृति, विमला, मल्लिका और मणिगण छन्द के लक्षण एवं उदाहरण हैं। इन्दुवंदनं का इन्दुवदना नामभेद दिया है। वसन्ततिलका, चक्र और प्रहरणकलिका के प्रत्युदाहरण भी दिये हैं। १. भेदाश्चतुर्दशैतस्याः क्रमतस्तु प्रदर्शिताः।
प्रस्तार्य स्वनिबन्धेषु पित्रातिस्फुटस्ततः ॥ पृ. ८१ इससे संभवतः ग्रन्थकार का संकेत लक्ष्मीनाथ भट्ट रचित 'उदाहरणमंजरी' ग्रंथ की ओर ही हो ।