________________
४८ ]
वृत्तमक्तिक
५ अक्षर-सम्मोहा, हारी, हंस, प्रिया और यमक नामक छन्दों के लक्षण एवं उदाहरण हैं । यमक का प्रत्युदाहरण भी दिया है ।
६ अक्षर - शेषा, तिलका, विमोह, चतुरंस, मन्थान, शंखनारी, सुमालतिका, तनुमध्या और दमनक नामक छन्दों के लक्षण एवं उदाहरण हैं । प्राकृतपिंगल के मतानुसार विमोह का विज्जोहा, चतुरंसं का चतुरंसा, मन्थानं का मन्थाना और सुमालतिका का मालती नामभेद भी दिये हैं ।
७ अक्षर:- शीर्षा, समानिका, सुवासक, करहञ्चि, कुमारललिता, मधुमती, मदलेखा और कुसुमतति नामक छन्दों के लक्षण एवं उदाहरण हैं ।
८ प्रक्षर - विद्युन्माला, प्रमाणिका, मल्लिका, तुङ्गा, कमल, माणवकक्रीडितक, चित्रपदा, अनुष्टुप् और जलद नामक छन्दों के लक्षण एवं उदाहरण हैं । मल्लिका का नाम भेद समानिका दिया है ।
६ अक्षर – रूपामाला, महालक्ष्मिका, सारंग, पाइन्तं, कमल, बिम्ब, तोमर, भुजगशिशुसृता, मणिमध्यं, भुजङ्गसङ्गता और सुललित नामक छन्दों के लक्षण एवं उदाहरण हैं । प्राकृतपिंगल के अनुसार सारंग का सारंगिका और पाइन्तं का पाइन्ता नामभेद दिये हैं । भुजगशिशुसृता के लिये लिखा है कि यह नाम आचार्य शम्भु एवं प्राचीनाचार्यों द्वारा सम्मत है और आधुनिक छन्द:शास्त्री इसका नाम भुजगशिशुभृता मानते हैं । सारंग का प्रत्युदाहरण भी दिया है ।
१० अक्षर - गोपाल, संयुतं, चम्पकमाला, सारवती, सुषमा, अमृतगति, मत्ता त्वरितगति, मनोरमं और ललितगति नामक छन्दों के लक्षण एवं उदाहरण हैं । प्राकृतपिंगल के अनुसार संयुतं का संयुता, चम्पकमाला का रुक्मवती एवं रूपवती तथा मनोरमं का मनोरमा नामभेद दिये हैं । संयुतं और त्वरितगति छन्दों के प्रत्युदाहरण भी दिये हैं ।
११ अक्षर — मालती, बन्धु, सुमुखी, शालिनी, वातोर्मी, शालिनी-वातो'पजाति, दमनक, चण्डिका, सेनिका, इन्द्रवज्रा, उपेन्द्रवज्रा, इन्द्रवज्रोपेन्द्रवज्रोपजाति, रथोद्धता, स्वागता, भ्रमरविलसिता, अनुकूला, मोटनक, सुकेशी, सुभद्रिका और बकुल नामक छन्दों के लक्षण एवं उदाहरण हैं । बन्धु का दोधक, चण्डिका का सेनिका और श्रेणी नामभेद दिये हैं । रथोद्धता का प्रत्युदाहरण भी दिया है।
शालिनी-वातोर्मी-उपजाति और इन्द्रवज्रा - उपेन्द्रवज्रा - उपजाति के ग्रन्थ कार ने १४- १४ भेद प्रस्तार दृष्टि से स्वीकार किये हैं किन्तु इन प्रस्तार-भेदों