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भूमिका
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२. पवनदूतम् - यह खण्डकाव्य है । इसको 'दूतम्' शब्द से मेघदूत या किसी दूत-काव्य की पादपूर्तिरूप तो नहीं समझना चाहिए किन्तु रचना इसकी मेघदूत के अनुकरण पर ही हुई है । कृष्ण के मथुरा चलें जाने पर राधा पवन के द्वारा संदेश भेजती है और स्वयं की मानसिक अवस्था का दिग्दर्शन कराती है। यह खण्डकाव्य भी अद्यावधि प्राप्त है । इसका केवल एक पद्य प्रस्तुत ग्रन्थ में शिखरिणी छन्द के प्रत्युदाहरण-रूप में प्राप्त है
यथा वा, ममैव पवनदूते खण्डकाव्ये '
यदा कंसादीनां निधनविधये यादवपुरीं,
गतः श्रीगोविन्दः पितृभवनतोऽकूरसहितः । तदा तस्योन्मीलद्विरहदहनज्वाल गहने,
पपात श्रीराधा कलिततदसाधारणगतिः ।।
३. प्राकृत पिङ्गल - ' उद्योत' टीका - प्राकृतपिङ्गल में दो परिच्छेद हैं१. मात्रावृत्त परिच्छेद और २. वणिकवृत्त परिच्छेद । यह उद्योत नामक टीका प्रथम परिच्छेद पर है । इसकी रचना सं. १६७३ में हुई है । वैसे तो इस पर बीसों टीकायें हैं जिनमें रविकर, पशुपति, लक्ष्मीनाथभट्ट, वंशीधर आदि की मुख्य हैं, किन्तु इस टीका की विशेषता यह है कि प्रस्तार और मात्रिक छंदों का विवेचन लालित्यपूर्ण भाषा में होते हुये भी सरलीकरण को लिये हुये है । पाण्डित्य - प्रदर्शन की अपेक्षा वर्ण्यविषय का अधिक स्पष्टता के साथ प्रतिपादन किया है । इसकी १८वीं शती की लिखित ४५ पत्रों की एकमात्र प्रति श्रनूप संस्कृत लायब्रेरी, बीकानेर में ग्रन्थ नं. ५४१२ पर सुरक्षित है । यह कृति प्रकाशन-योग्य है | इसका आद्यन्त इस प्रकार है
आदि - अहित हृदय कीलं गोपनारीसुलीलं,
सजलजलदनीलं लोकसंत्राणशीलम् । उरसि निहितमालं भक्तवृन्दस्य पालं,
कलय दनुजकालं नन्दगोपालबालम् ||१|| तातसंरचित पिङ्गलदीपध्वस्तचितघनमोहनसंतति: ( ? ) अर्थ भारयुतपिङ्गलभावोद्योतमाचरति चन्द्रशेखरः ||२|| श्रीमत्पङ्गलनागोक्त सूत्राणां विशदार्थिका । शिष्यावबोधसिद्ध्यर्थं संक्षिप्ता वृत्तिरुच्यते || ३ ||
१- वृत्तमौक्तिक पृ. १३६