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वृत्तमौक्तिक
. प्रथम खंड में छह प्रकरण हैं :-१. गाथाप्रकरण, २. षट्पदप्रकरण, ३. रड्डाप्रकरण, ४. पद्मावतीप्रकरण, ५. सवैयाप्रकरण और ६. गलितकप्रकरण ।
द्वितीय-खण्ड में बारह प्रकरण हैं :-१. वर्णवृत्त प्रकरण, २. प्रकीर्णकवृत्त-प्रकरण, ३. दण्डक प्रकरण, ४. अर्ध-समवृत्त-प्रकरण, ५. विषमवृत्त प्रकरण, ६. वैतालीय प्रकरण, ७. यति निरूपण प्रकरण, ८. गद्य-निरूपण प्रकरण, ६. विरुदावली-प्रकरण, १०. खण्डावली-प्रकरण, ११. विरुदावली-खण्डावली का दोषप्रकरण और १२. दोनों खण्डों की अनुक्रमणिका।
द्वितीय-खण्ड के नवम विरुदावली प्रकरण में चार अवान्तर प्रकरण हैं१. कलिका-प्रकरण, २. चण्डवृत्त-प्रकरण, ३. त्रिभङ्गीकलिका-प्रकरण और ४. साधारण चण्डवृत्त-प्रकरण ।
इस प्रकार दोनों खण्डों के १८ प्रकरण होते हैं और नवम प्रकरण के चारों अवान्तर प्रकरण सम्मिलित करने पर कुल २२ प्रकरण' होते हैं ।
प्रथम खण्ड का सारांश १. गाथा प्रकरण :
कवि मंगलाचरण एवं ग्रंथ-प्रतिज्ञा करके वर्णों की गुरु-लघु स्थिति का उदाहरण सहित वर्णन और लक्षण रहित काव्य का अनिष्ट फल का प्रतिपादन करता है। मात्राओं की टगणादि गणों की व्यवस्था और उनके प्रस्तार का निरूपण करते हुए मात्रिक-गणों के नाम तथा उनके पर्यायों की पारिभाषिक-सांकेतिक शब्दों की तालिका' देता है । पश्चात् वणिकवृत्तों के मगणादि गण,गणदेवता, गणों की मंत्री और गणदेवों का फलाफल प्रदर्शित है।
प्रस्तार का वर्णन करते हुये मात्रोहिष्ट, मात्रानष्ट, वर्णोद्दिष्ट, वर्णनष्ट, वर्णमेरु, वर्णपताका, मात्रामेरु, मात्रापताका, वृत्तद्वयस्थ गुरु-लघुज्ञान, वर्णमर्कटी
और मात्रामर्कटी का दिग्दर्शन कराते हुये प्रस्तारपिंड-संख्या का निर्देश किया है; जिसके अनुसार समग्रवृत्तों की प्रस्तार संख्या १३,४२,१७,७२६ होती है।
१-उभयोः खण्डयोश्चापि सम्भूयैव प्रकाशितम् ।
द्वाविंशतिः प्रकरणं रुचिरं वृत्तमौक्तिके ।। पृ० २८६ २-पारिभाषिक शब्द संकेतों के लिए प्रथम परिशिष्ट देखें।