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भूमिका
भारती दिया है न कि चन्द्रशेखर भट्ट । चन्द्रशेखर भट्ट ने अपनी कृतियों में अपने नाम के साथ कहीं भी 'भारती' शब्द का प्रयोग नहीं किया है। अपने नाम के साथ सर्वत्र भट्ट एवं लक्ष्मीनाथात्मज का प्रयोग किया है। अतः यह स्पष्ट है कि छन्दोमञ्जरीजीवन के कर्ता चन्द्रशेखर भट्ट नहीं है, अपितु कोई चन्द्रशेखर भारती हैं। संभव है चन्द्रशेखर नाम-साम्य से भ्रमवशात् सम्पादक ने लिख दिया हो !
वृत्तमौक्तिक का सारांश नामकरण____ कवि चन्द्रशेखर भट्ट ने प्रस्तुत ग्रंथ का नाम 'वृत्तमौक्तिकम्'' रखा है, किन्तु द्वितीय-खण्ड के ग्यारहवें प्रकरण में 'वात्तिक वृत्तमौक्तिकम् तथा प्रथम खण्ड एवं द्वितीय-खण्ड की पुष्पिका में 'वृत्तमौक्ति के पिङ्गलवात्तिके' और प्रथमखण्ड के १,३,४,५वें प्रकरणों की तथा द्वितीय-खण्ड के प्रकरण ५, ७ से १० की पुष्पिकाओं में 'वृत्तमौक्तिके वात्तिके' का उल्लेख है । लक्ष्मीनाथ भट्ट ने इस ग्रंथ का नाम 'वृत्तमौक्तिक-वार्तिक' ही स्वीकार किया है, इसीलिए टीका का नाम भी 'वृत्तमौक्तिवात्तिकदुष्करोद्वार'५ रखा है। वस्तुतः प्राकृतपिंगल, छन्द:सूत्र एवं प्राकृतपिंगल के टीकाकार पशुपति और रविकर की टीकाओं और शम्भु' प्रणीत छन्दश्चूडामणि (?) के आधार एवं अनुकरण पर पिंगल के वात्तिक-रूप में ग्रन्थकार ने इसकी स्वतन्त्र रचना की है। अत: वृत्तमौक्तिकवात्तिकं नाम स्वीकार कर सकते हैं, किन्तु मूलतः अधिकांश स्थानों पर ग्रन्थकार ने एवं टीकाकार महोपाध्याय मेघविजयजी ने 'वृत्तमौक्तिकम्' मौलिक नाम ही ग्रहण किया है ; जो कि अधिक उपयुक्त प्रतीत होता है। ग्रन्थ का सारांश
प्रस्तुत ग्रन्थ दो खण्डों में विभक्त हैं। प्रथम-खण्ड मात्रावृत्त खण्ड और द्वितीय-खण्ड वर्णिकवृत्त खंड है ।
१-श्रीचन्द्रशेखरकविस्तनुते वृत्तमौक्तिकम् । पृ० १, स्पष्टार्थं वरवृत्तमौक्तिकमिति ग्रंथं मुदा निर्ममे । पृ० २६०
श्रीवृत्तमौक्तिकमिदम्। पृ० २६१ २-१० २७२
३-प०५६ एवं २६१ ४-देखें पृ० १३, ३०, ४६, ४६, १६४, २०६, २१०, २६७, २७१ ५-देखें, वात्तिक-दुष्करोद्धार का मंगलाचरण एवं प्रत्येक विश्राम की पुष्पिको। ६-रविकर-पशुपति-पिङ्गल-शम्भुग्रन्थान् विलोक्य निर्बन्धात् । पृ० २७३ ७-तत्र मात्रावतखण्डे प्रथमे । प० २७३ ८-अथ द्वितीयखण्डस्य वर्णवृत्तस्य । पृ० २७६