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भूमिका
गाथा के विगाथा, गाहू, उद्गाथा, गाहिनी, सिंहिनी और स्कन्धक आर्याभेदों का नामोल्लेख कर गाथा का लक्षण और आर्या' का सामान्य लक्षण उदाहरण सहित दिया है । प्राचीन परम्परा के अनुसार प्रार्या का विशिष्ट भेद दिखाया है जिसके अनुसार एक जगणयुक्त आर्या कुलीना. दो जगणयुक्त प्रार्या अभिसारिका, तीन जगणयुक्त आर्या रण्डा और अनेक जगणयुक्त आर्या वेश्या कहलाती है। गाथा छन्द के २५ भेदों के नाम और लक्षण देकर उदाहरणों के लिये स्वपिता लक्ष्मीनाथ भट्ट रचित 'उदाहरणमंजरी' देखने का संकेत किया है।
विगाथा, गाहू, उद्गाथा, गाहिनी, सिंहिनी और स्कन्धक छन्दों के उदाहरण सहित लक्षण दिये हैं और स्कन्धक छन्द के २८ भेदों के नाम और लक्षण देते हुये उदाहरणों के लिये 'उदाहरणमंजरी' का उल्लेख किया है।
इस प्रकार प्रथम प्रकरण में छन्दसंख्या की दृष्टि से गाथादि ७ छंद और गाथा के २५ भेद एवं स्कन्धक के २८ भेदों का प्रतिपादन हैं । २. षट्पद प्रकरण :
इस प्रकरण में दोहा, रसिका, रोला, गन्धानक, चौपैया, घत्ता, घत्तानन्द, काव्य, उल्लाल और षट्पद छन्दों के लक्षण एवं उदाहरण दिये हैं। इसमें उल्लाल छन्द का उदाहरण नहीं है। साथ ही दोहा के २३ भेद, रसिका के ८ भेद. रोला के १३ भेद, काव्य के ४५ भेद और षट्पद के ७१ भेदों के नाम और लक्षण दिये हैं तथा इन समस्त भेदों के उदाहरणों के लिए कवि ने 'उदाहरणमंजरी' देखने का संकेत किया है । इसमें काव्य के प्रथम भेद शक्रछन्द का उदाहरण भी दिया है।
चौपैया छन्द के एक चरण में ३० मात्रायें होती हैं । ग्रंथकार ने चार चरणों का अर्थात् १२० मात्राओं का एक पाद स्वीकार कर चार पदों की ४८० मात्रा स्वीकार की है।
प्रकरण के अन्त में काव्य और षट्पद के प्राकृत और संस्कृत साहित्य के अनुसार दोषों का निरूपण है।
१-संस्कृत साहित्य में जिसे प्रार्या कहते हैं , उसे प्राकृत और अपभ्रश साहित्य में गाथा
कहते हैं । "प्रायैव संस्कृतेतरभाषासु गाथासंज्ञेति ।" हेमचन्द्रीय-छन्दोनुशासन, पत्र १२८ । २-एकस्मात्तु कुलीना, द्वाभ्यामप्यभिसारिका भवति । नायकहीना रण्डा, वेश्या बहुनायका भवति ॥ पृ० ६