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भूमिका
है कि कोई लघुकाव्य का अंश हो ! पद्य निम्न है:संग्रामारण्यचारी विकटभटभुजस्तम्भभूभृद्द्द्विहारी, शत्रुक्षोणीशचेतोमृगनिकरपरानन्दविक्षोभकारी । माद्यन्मातङ्गकुम्भस्थल गलदमलस्थूल मुक्ताग्रहारी, स्फारीभूताङ्गधारी जगति विजयते खड्गपञ्चाननस्ते ॥'
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चन्द्रशेखर भट्ट
प्रस्तुत ग्रन्थ के प्रणेता चन्द्रशेखर भट्ट लक्ष्मीनाथ भट्ट के पुत्र हैं । इनकी माता का नाम लोपामुद्रा है । इन्होंने अपनी अन्तिम रचना वृत्तमौक्तिक (सं० १६७५-७६) में स्वप्रणीत पाण्डवचरित महाकाव्य और पवनदूत खण्डकाव्य का उल्लेख किया है अतः ये दोनों रचनायें सं० १६७५ के पूर्व की हैं । महाकाव्य की रचना के लिए कम से कम २५-३० को अवस्था तो अपेक्षित है ही । इस अनुमान से इनका जन्म १६४० और १६४५ के मध्य माना जा सकता है । सं० १६७५ की वसन्त पंचमी और सं० १६७६ की कार्तिकी पूर्णिमा के मध्य में इनका श्रल्पावस्था में ही स्वर्गवास हो गया था । अनुमान के अतिरिक्त इनके सम्बन्ध में कोई भी ज्ञातव्य वृत्त प्राप्त नहीं है । चन्द्रशेखर लक्ष्मीनाथ भट्ट के एकाकी पुत्र थे या इनके और भी भाई थे ? और चन्द्रशेखर के भी कोई सन्तान थीं या नहीं ? इनकी वंश परंपरा यहीं लुप्त हो गई या श्रागे भी कुछ पीढियों तक चली आदि प्रश्न तिमिराछन्न ही हैं। इस सम्बन्ध में तो एतद्देशीय भट्ट - वंश के विद्वान् ही प्रकाश डाल सकते हैं ।
ग्रन्थकार द्वारा सर्जित साहित्य इस प्रकार है-
१. पाण्डवचरित महाकव्य — स्वयं ग्रन्थकार ने प्रस्तुत ग्रन्थ में 'द्रुतविलम्बित, मालिनी, शार्दूलविक्रीडित और स्रग्धरा छन्द के उदाहरण एवं प्रत्युदाहरण देते हुये 'मत्कृतपाण्डवचरिते महाकाव्ये, ममैव पाण्डवचरिते' लिखा है । अतः उल्लिखित पद्य यहाँ दिये जा रहे हैंमत्कृतपाण्डवचरिते महाकाव्ये कर्णवर्णनप्रस्तावे
नृषु विलक्षणमस्य पुनर्वपुस्सहज कुण्डलवर्म सुमण्डितम् । सकललक्षणलक्षितमद्भुतं न घटते रथकारकुलोचितम् ॥
१. वृत्तमोक्तिक पु. १६०
२. छन्दःशास्त्र पयोनिधिलोपामुद्रापति पितरम् । श्रीमल्लक्ष्मीनाथं सकलागमपारगं वन्दे ॥ पृ. २६०
३. वृत्तमौक्तिक पृ. ९२,