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६. शशि
६. शशि ७. सूर्य
७. दिनकर ८. कुम्भद्विक
८. कुम्भ ९. झषयुगल
९. झय (ध्वजा) १०. सागर
१०. सागर ११. सरोवर
११. पद्मसर १२. सिंहसन १३. देव-विमान
१२. विमान १४. नाग-विमान
१३. - १५. रत्न-राशि
१३. रत्न-उच्चय १६. निर्धूम अग्नि
शिखि (अग्नि) दोनों परम्पराओं में तेरह स्वप्न तो एकसे ही हैं । किन्तु दि. परम्परा में जहां झष (मीन) का उल्लेख है, वहां श्वे. परम्परा में झय (ध्वज) का उल्लेख है । ज्ञात होता है कि किसी समय प्राकृत के 'झस' के स्थान पर 'झय' या झय के स्थान पर झस पाठ के मिलने से यह मत भेद हो गया। इन चौदह स्वप्नों के अतिरिक्त दि. परम्परा ये २ स्वप्न और अधिक माने जाते हैं, उनमें एक हैं सिंहासन और दूसरा है भवनवासी देवों का नाग-मन्दिर या नागविमान ।
श्वे. परम्परा के भगवती सूत्र आदि में माता के चौदह स्वप्नों का स्पष्ट उल्लेख होने से उनके यहां १४ स्वप्नों की मान्यता स्वीकार की गई । पर आश्चर्य तो यह है कि उन चौदह स्वप्नों के लिए 'तंजहा'- कह कर जो गाथा दी गई है, उसमें १५ स्वप्नों का स्पष्ट निर्देश है । वह गाथा इस प्रकार है
गय-वसहर-सीह-अभिसेय-दाम-ससि-दिणयरं झयं कुम्भं । पउमसर -सागर-विमाण२-भवण ३-रयणुच्चय-सिहिं च५॥
इस गाथोक्त स्वप्नों के ऊपर दिये गये अंकों से स्वप्नों की संख्या १५ सिद्ध होती है । विमलसूरि के पउमचरिउ में दी गई गाथा में भी स्वप्नों की संख्या १५ ही प्रमाणित होती है । वह गाथा इस प्रकार है -
वसह गया सीहो वरसिरि दामं ससि रवि झयं च कलसं च । सर सायर" विमाणं२ वरभवर्ण१३ रयण" कूडग्गी॥
(पउमचरिउ, तृष्ठद्देश, गा. ६२) समझ में नहीं आता कि जब दोनों ही गाथाओं में 'भवन' या 'वर भवन' का स्पष्ट उल्लेख पाया जाता है, तब श्वे. आचार्यों ने उसे क्यों छोड़ दिया । ऐसा प्रतीत होता है, कि भगवती सूत्र आदि में १४ स्वप्नों के देखने का स्पष्ट विधान ही इसका प्रमुख कारण रहा है ।*
मेरे विचार से दि. परम्परा में १६ स्वप्न-सूचक गाथा इस प्रकार रही होगी
__ • श्वे. शास्त्रों के विशिष्ट अभ्यासी श्री प. शोभाचन्द्र जी भारिल्ल से ज्ञात हुआ है कि गाथा-पठित १५ स्वप्नो में से तीर्थंकर की माता केवल १४ ही स्वप्न देखती है । स्वर्ग से आने वाले तीर्थंकर की माता को देव-विमान स्वप्न में दिखता है, नाग-भवन नहीं । इसी प्रकार नरक से आने वाले तीर्थंकर की माता को स्वप्न में नाग-भवन दिखता है, देव-विमान नहीं । उक्त दोनों का समुच्चय उक्त गाथा में किया गया है। पर दि. परम्परानुसार देव-विमान ऊर्ध्व लोक के अधिपतित्व का, सिंहासन मध्यलोक के स्वामिस्व का और नाग-विमान या भवन अधोलोक के आधिपत्य का सूचक है । जिसका अभिप्राय है कि गर्भ में आने वाला जीव तीनों लोकों के अधिपतियों द्वारा पूज्य होगा ।
- सम्पादक
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