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20 उसका कल्याण किया, दुःख-संत्रस्त जीवों का दुःखों से विमोचन किया और स्वर्ग-मुक्ति का मार्ग दिखाकर उसकी ओर उन्हें अग्रसर किया ।
प्रस्तुत काव्य में भ. महावीर के मुख्य उपदेशों को चार भागों में विभाजित किया गया है -१. साम्यवाद, २. अहिंसावाद, ३. स्याद्वाद और सर्वज्ञतावाद । इन चारों ही वादों का ग्रन्थकार ने बहुत ही सरल और सयुक्तिक रीति से ग्रन्थ के अन्तिम अध्यायों में वर्णन किया है, जिसे पढ़कर पाठकगण भगवान् महावीर की सर्वहितकारिणी देशना से परिचित होकर अपूर्व आनन्द का अनुभव करेंगे।
भ. महावीर ने 'कर्मवाद' सिद्धान्त का भी बहुत विशद उपदेश दिया था, जिसका प्रस्तुत काव्य में यथास्थान 'स्वकर्मतोऽङ्गी परिपाकभर्ता' (सर्ग १६ श्लो. १०) आदि के रूप में वर्णन किया ही गया है ।
भ. महावीर का गर्भ-कल्याणक जैन मान्यता है कि जब किसी भी तीर्थकर का जन्म होता है, तब उसके गर्भ में आने के छह मास पूर्व ही इन्द्र की आज्ञा से कुबेर आकर जिस नगरी में जन्म होने वाला है, उसे सुन्दर और सुव्यवस्थित बनाता है और श्री ह्री आदि ५६ कुमारिका देवियां आकर होने वाले भगवान् की माता की सेवा करती हैं । उनमें से कितनी ही देवियां माता के गर्भ का शोधन करती हैं, जिसका अभिप्राय यह है कि जिस कुक्षि में एक महापुरुष जन्म लेने वाला है, उस कुक्षि में यदि कोई रोग आदि होगा, तो उत्पन्न होने वाले पुत्र पर उसका प्रभाव अवश्य पड़ेगा । आज की भाषा में ऐसी देवियों को लेडी डाक्टर्स या नर्सेज कह सकते हैं । यत बाहिरी वातावरण का गर्भस्थ शिशु पर प्रभाव पड़ता है, अतः वे कुमारिका देवियां भगवान् के जन्म होने तक माता के चारों ओर का वातावरण ऐसा सुन्दर और नयन-मनहारी बनाती हैं कि जिससे किसी भी प्रकार का क्षोभ या संक्लेश माता के मन में उत्पन्न न होने पावे । इसी सब सावधानी का यह सुफल होता है कि उस माता के गर्भ से उत्पन्न होने वाला बालक अतुल बली, तीन ज्ञान का धारक और महा प्रतिभाशाली होता है ।
साधारणत यह नियम है कि किसी भी महापुरुष के जन्म लेने के पूर्व उसकी माता को कुछ विशिष्ट स्वप्न आते हैं, जो कि किसी महापुरुष के जन्म लेने की सूचना देते हैं । स्वप्न शास्त्रों में ३० विशिष्ट स्वप्न माने गये हैं । जैन शास्त्रों के उल्लेखानुसार तीर्थङ्कर की माता उनमें से १६, चक्रवती की माता १४, वासुदेव की माता ७ और बलदेव की माता ४ स्वप्न देखती हैं । यहां यह ज्ञातव्य है कि श्वे. परम्परा में तीर्थङ्कर की माता के १४ ही स्वप्न देखने का उल्लेख मिलता है।
दोनों परम्पराओं के अनुसार स्वप्नावली इस प्रकार हैदिगम्बर परम्परा
श्वेताम्बर परम्परा
१. गज २. वृषभ ३. सिंह ४. लक्ष्मी ५. माल्यद्विक
१. गज २. वृषभ ३. सिंह ४. श्री अभिषेक ५. दाम (माला)
१. सुमिणसत्थे वायालीसं सुमिणा, तीसं महासुमिणा, वावत्तरि सव्वसुमिणा दिट्ठा । तत्थ णं देवाणुप्पिया, अरहंतमायरो वा चक्कवट्टिमायरो वा x x x चउदस महासुमिणे पासित्ता णं पडिबुझंति । x x x वासुदेवमायरो वा महासुमिणाणं अण्णयरे सत्त महासुमिणे । बलदेवमायरो वा महासुभिणाणं अण्णयरे चत्तारि ।
(भगवती सूत्र शतक १६, उद्देश ६ सूत्र ५८१)
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