________________
Ce 12
अथ द्वितीयः सर्गः
द्वीपोऽथ जम्बूपपदः समस्ति स्थित्यासकौ मध्यगतप्रशस्तिः । लक्ष्म्या त्वनन्योपमयोपविष्टः द्वीपान्तराणामुपरिप्रतिष्ठः ॥१॥
इस असंख्यात द्वीप और समुद्र वाली पृथ्वी पर सबके मध्य में 'जम्बू' इस उपपद से युक्त द्वीप है, जो अपनी स्थिति से पृथ्वी पर मध्यगत प्रशस्ति को प्राप्त होकर अवस्थित है । यह अनन्य उपमा वाली लक्ष्मी से संयुक्त है और सभी द्वीपान्तरों के ऊपर प्रतिष्ठित है ॥१॥
भावार्थ जो मध्यस्थ भाग होता है, सो सर्वोपरि प्रतिष्ठित कैसे हो सकता है, यह विरोध है। परन्तु जम्बूद्वीप मध्य भागस्थ हो करके भी शोभा में सर्व शिरोमणि है ।
सम्वद्धि सिद्धिं प्रगुणामितस्तु पाथेयमाप्तं यदि वृत्तवस्तु । इतीव यो वक्ति सुराद्रिदम्भोदस्तस्वहस्तां गुलिरङ्गि नम्भोः ॥ २ ॥
1
इस जम्बूद्वीप के मध्य में एक लाख योजन की ऊंचाई वाला जो सुमेरु पर्व है । उसके बहाने से मानों यह जम्बू द्वीप लोगों को सम्बोधन कर सुमेरु पर्वत रूप अपने हाथ को ऊंचा उठा करके यह कह रहा है कि ओ मनुष्यों, यदि तुमने चारित्र वस्तु रूप पाथेय ( मार्ग भोजन ) प्राप्त कर लिया है अर्थात् चारित्र को धारण कर लिया है, तो फिर सिद्धि (मोक्ष लक्ष्मी) को सरलता से प्राप्त हुई ही समझो ॥२॥
अधस्थविस्फारिफणीन्द्रदण्डश्छत्रायते वृत्ततयाऽप्यखण्ड: सुदर्शनेत्युत्तमशैलदम्भं स्वयं समाप्नोति सुवर्णकुम्भम् ॥३॥
अधोलोक में अवस्थित और फैलाया है अपने फणा मण्डल को जिसने ऐसा शेषनाग रूप जिसका दण्ड है, उसका वृत्ताकार से अखण्ड जम्बू द्वीप छत्र के समान प्रतीत हो रहा है । तथा सुदर्शन नाम का जो यह सुमेरु पर्वत है यह स्वयं उसके स्वर्ण कुम्भ की उपमा को धारण कर रहा है ||३|| सुवृत्तभावेन च पौर्णमास्य- सुधांशुना सार्धमिहोपमाऽस्य । विराजते यत्परितोऽम्बुराशिः समुल्लसत्कु ण्डिनवद्विलासी ॥४॥ सुवर्तुलाकार रूप से पूर्णमासी के चन्द्रमा के साथ पूर्ण उपमा रखने वाले इस जम्बूद्वीप को सर्व ओर से घेर करके उल्लसित कुण्डल के समान विलास (शोभा) को धारण करने वाला ( लवण) समुद्र अवस्थित है ॥४॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org