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उस सभा-स्थल का निर्माता तो शचीपति शक्र का अग्रणी प्रतिनिधि श्रीमान् कुबेर था और उसके उपभोक्ता अभेय महिमा वाले सर्वज्ञ चूड़ामणि वीर भगवान् थे । तथा उस सभास्थल का संद्दष्टा समस्त पृथ्वी पर उत्पन्न हुए जीवों का समूह था । मेरी यह रसा (वाणी) भी शीघ्र उस सम्पदा की रसस्थिति को कुछ वर्णन करने में समर्थ होवे ॥५३॥
श्रीमान् श्रेष्ठि चतुर्भुजः स सुषुवे भूरामले त्याह्वयं - वाणीभूषण-वर्णिनं घृतवरी देवी च यं धीचयम् । ग्रीष्मर्तृदयतोऽभवद्भगवतः सद्बोधभानूदय स्तस्य द्वादशनाम्नि तेन गदिते सर्गेऽत्र युक्तोऽन्वयः ॥१२॥ इस प्रकार श्रीमान् सेठ चतुर्भुजजी और घृतवरी देवी से उत्पन्न हुए वाणीभूषण बाल-ब्रह्मचारी पं. भूरामल वर्तमान मुनि ज्ञानसागर द्वारा विरचित इस काव्य में ग्रीष्म ऋतु और भगवान् के केवल ज्ञानप्राप्ति का वर्णन करने वाला बारहवां सर्ग समाप्त हआ ॥१२॥
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