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तनुं परोद्वर्तयितुं गतापि कयाऽभिषेकाय क - क्लृप्तिरापि । जडप्रसङ्गोऽत्र कुतः समस्तु कृत्वेति चित्ते किल तर्कवस्तु ॥१०॥ सन्मार्जिता प्रोञ्छनकेन तस्याः कया पुनर्गात्रततिः प्रशस्या । दुकूलमन्या समदात्सुशातं समादरोऽस्या गुणवत्स्वथातः ॥ ११ ॥ कोई देवी माता के शरीर का उबटन करने लगी, तो कोई स्नान के लिए जल लाने को उद्यत हुई । किसी ने स्नान कराया, तो किसी ने मां के प्रशंसनीय शरीर के ऊपर पड़े हुए जल को यह विचार करके कपड़े से पोछा कि इस पवित्र उत्तम माता के साथ जड़ (मूर्ख, द्वितीय पक्ष में जल ) का प्रसंग क्यों रहे ? माता का गुणवानों के प्रति सदा आदर रहता है, ऐसा सोचकर किसी देवी ने पहिनने के लिए माता को उत्तम वस्त्र दिया ॥१० - ९१ ॥
बबन्ध काचित्कबरी च तस्या निसर्गतो वक्रिमभावद्दश्याम् । तस्याः द्दशोश्चञ्चलयोस्तथाऽन्याऽञ्जनं चकारातिशितं वदान्या ॥ १२ ॥
किसी देवी ने स्वभाव से उस माता के वक्रिम (कुटिल) भाव रूप दिखने वाले घुंघराने बालों का जूड़ा बांधा, तो किसी चतुर देवी ने माता के चंचल नेत्रों में अत्यन्त काला अंजन लगाया ॥ १२ ॥
श्रुती सुशास्त्रश्रवणात् पुनीते पयोजपूजामत एव नीते ।
सर्वेषु चाङ्गेषु विशिष्टताले चकार काचित्तिलकं तु भाले ॥१३॥
दोनों कान उत्तम शास्त्रों के सुनने से पवित्र हुए हैं, अतएव वे कमलों से पूजा को प्राप्त हुए, अर्थात् किसी देवी ने माता के कानों में कमल ( कनफूल) लगा दिये । यह भाल (मस्तक) शरीर के सर्व अंगों में विशिष्टता वाला है, अर्थात् उत्तम है, यह विचार कर किसी देवी ने उस पर तिलक लगा दिया ॥ १३ ॥
अलञ्चकारान्यसुरी रयेण पादौ पुनर्नूपुरयोर्द्वयेन । चिक्षेप कण्ठे मृदु पुष्पहारं संछादयन्ती कुचयोरिहारम् ॥१४॥
कोई अन्य देवी माता के दोनों चरणों को शीघ्रता से नूपुरों के जोड़े से अंलकृत करती हुई । किसी देवी ने दोनों स्तनों को आच्छादित करते हुए माता के कण्ठ में सुकोमल पुष्पहार पहिनाया ।
।१४।।
काचिद् भुजेऽदादिह बाहुबन्धं करे परा कङ्कणमाबबन्ध । श्रीवीरमातुर्वलयानि तानि माणिक्य - मुक्तादिविनिर्मितानि ॥ १५ ॥
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