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कुछ विशेषताएं इस प्रकार हैं
(१) भगवान् का जीव जब विश्वनन्दी के भव में था और उस समय मुनि पद में रहते हुए विशाखनन्दी को मारने का निदान किया, उस स्थल पर कवि ने निदान के दोषों का बहुत वर्णन किया है ।
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(२) भ. महावीर का जीव इकतीसवें नन्दभव में जब षोड़श कारण भावनाओं को भाता है, तब उनका बहुत विस्तृत एवं सुन्दर वर्णन कवि ने किया है ।
(३) श्री ह्री आदि षट्कुमारिका देवियों के कार्य का वर्णन कवि ने इस प्रकार किया है
आहे श्री देवी शोभा करि, लज्जा भरि ही नाम कुमारि 1 आहे धृति देवी संतोष बोलि, जस कीर्ति सुरनारि
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आहे बुद्धि देवी आपी बहु बुद्धि, रिद्धि-सिद्धि लक्ष्मी चंग । आहे देवी तणु हवु नियोग, शुभोपयोग प्रसंग ॥७॥
(४) कुमारिका देवियों द्वारा पूछे गये प्रश्नों का उत्तर भी माता के द्वारा अनुपम ढंग से कवि ने प्रस्तुत किया है। (५) जन्माभिषेक के समय पाण्डुकशिला पर भगवान् को विराजमान करने आदि का वर्णन कवि ने ठीक उस प्रकार से किया है, जिस प्रकार से कि आज पंचामृताभिषेक के समय किया जाता है ।
(६) सौधर्म इन्द्र के सिवाय अन्य देवों के
देव
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अवर जथा
द्वारा भी भगवान् के अभिषेक का वर्णन कवि ने किया है । यथाअसंख्य निज शक्ति लेइ कुंभ जोगि जल धार देई देव बहु रंभ 11 बाद सर्वोषधि आदि से भी अभिषेक का वर्णन कवि ने किया है । आठ वर्ष का होने पर क्षायिक सम्यक्त्व और आठ मूल गुणों के
जल से अभिषेक के (७) वीर भगवान् के
धारण करने का उल्लेख
कवि ने किया है ।
(८) भगवान् के दीक्षार्थ चले जाने पर त्रिशला माता के करुण विलाप का भी वर्णन किया गया है । (९) जिस स्थान पर भगवान ने दीक्षा ली उस स्थान पर इन्द्राणी द्वारा पहिले से ही सांथिया पूर देने का भी उल्लेख किया गया है ।
शेष कथानक पूर्व परम्परानुसार ही है ।
कवि नवलशाह का वर्धमान पुराण
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श्री सकल कीर्ति के संस्कृत वर्धमान चरित के आधार पर कवि नवलशाह ने छन्दोबद्ध हिन्दी वर्धमान पुराण की रचना की है । इसमें कथानक तो वही हैं। हां कुछ स्थलों पर कवि ने तात्त्विक चर्चा का विस्तृत वर्णन किया है । और कुछ स्थलों का पद्यानुवाद भी नहीं किया है । ग्रन्थ की रचना दोहा, चौपाई, सोरठा, गीता, जोगीरासा, सवैया,आदि अनेक छंदों में की गई है जो पढ़ने में रोचक और मनोहर है । कवि ने इसकी रचना वि. सं. १८२५ के चैत सुदी १५ को पूर्ण की है । यह दिगम्बर जैन पुस्तकालय सूरत से वी. नि. २४६८ में मुद्रित हो चुका है ।
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