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हमारे चरित्रनायकोंकी गुरुपरम्पराका, क्रमबद्ध पता चित्रकूटपुर निवासी एलाचार्यसे प्रारंभ होता है । एलाचार्यके पास वीरसेनस्वामीने सम्पूर्ण सिद्धान्तशास्त्रोंका अध्ययन करके उपरितम आदि आठ अधिकारोंको लिखा था। ये एलाचार्य कौन थे, और उनकी गुरुपरम्परा क्या थी, इसका पता अभीतक कुछ भी नहीं मिला है । श्रुतावतारमें केवल इतना ही उल्लेख मिलता है:
काले गते कियत्यपि ततः पुनश्चित्रकूटपुरवासी । श्रीमानेलाचार्यों वभूव सिद्धान्ततत्त्वज्ञः ॥ १७६ ॥ तस्य समीपे सकलं सिद्धान्तमधीत्य वीरसेनगुरुः ।
उपरितमनिवन्धनाद्यधिकारानष्टं लिलेख ॥ १७७ ।। वीरसेन स्वामीके विनयसेन, जिनसेन, और दशरथगुरुनामके तीने शिष्योंका पता लगता है। इनमेंसे विनयसेनका उल्लेख जिनसेन स्वामीने अपने पार्श्वभ्युदयकान्यकी प्रशस्तिमें किया है:
श्रीवीरसैनमुनिपादपयोजभृङ्गः
श्रीमानभूद्विनयसेनमुनिर्गरीयान् । . , तच्चोदितेन जिनसेनमुनीश्वरेण
. काव्यं व्यधायि परिवेष्टितमेघदूतम् ॥ ७१ ॥ १. यह चित्रकूटपुर कहां है, यह ठीक २ नहीं कहा जा सकता है।
२. जयधवलटीकाकी प्रशस्तिमें एक श्रीपाल नामके आचार्यका उल्लेख है, जिन्होंने इस टीकाको सम्पादन की है। क्या आश्चर्य है कि, वे भी वीरसेनस्वा. मीके एक शिष्य हों:' टीका श्रीजयचिह्नितोरधवला सूत्रार्थसंबोधिनी ।
स्थेयादारविचन्द्रमुज्ज्वलतमा श्रीपालसम्पादिता।
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