________________
कोंमें आदिपुराण पूर्ण हुआ है और शेष ८००० श्लोकोंमें उत्तरपुराण समाप्त हुआ है । आदिपुराणमें ४७ पर्व वा अध्याय हैं । जिनमें ४२ पर्व पूरे और ४३ वें पर्वके तीन श्लोक जिनसेनस्वामीके बनाये हुए हैं । शेष पांच पर्व ( १६२० श्लोक ) गुणभद्रस्वामीके बनाये हुए हैं। भगवान् जिनसेन ४३ व पर्वके केवल तीन श्लोक ही वना पाये थे कि उनका देहोत्सर्ग हो गया । कहते हैं कि, जिस समय जिनसेनस्वामीने महापुराणका प्रथम मंगलाचरणका श्लोक बनाया था; उस समय उन्होंने अपने शिप्यासे कह दिया था कि, यह ग्रन्य मुझसे पूर्ण नहीं होगा । मंगलाचरणके श्लोकमें जो अक्षर और शब्द योजित हुए थे; उनके निमित्तसे उस विशाल बुद्धिशाली महात्माने यह भविष्य कहा था और निदान वह पूर्ण हुआ ! शेष ग्रन्य गुणभद्राचार्यने पूर्ण करके अपनी गुरुमक्तिका परिचय दिया । - पं० कुप्पूस्वामी शास्त्री आदि कई एक विद्वानोंका ऐसा ख्याल है कि, महापुराण जैनियोंका सबसे पहिला ग्रन्य है। इसके पहिले उनका और कोई पुराण अन्य नहीं था । और इसके लिये वे हस्तिमल्लि कविके विक्रान्तकौरवीय नाटकका यह श्लोक पेश करते हैं,
तच्छिप्यप्रवरो जातो जिनसेनमुनीश्वरः ।
यद्वाङ्मयं पुरोरासीत पुराणं प्रथमं भुवि ॥ इसका अभिप्राय यह है कि, उनके (वीरसेनके ) शिप्य जिनसेन • हुए, जिन्होंने पुरुदेवका अर्थात् आदिनाथ भगवानका मुख्य पुराण बनाया । इस श्लोकमें जो 'प्रथम' पद है, उसका अर्थ