________________
(८०)
प्रश्नोत्तररत्नमाला नामकी एक छोटीसी पुस्तक है। उसके अन्तमें जो निम्नलिखित श्लोक है, उससे मालूम होता है कि उन्होंनेविवेकपूर्वक यह समझकर कि संसार सारहीन है, राज्यका त्याग कर दिया था। विवेकाच्यक्तराज्येन राज्ञेयं रत्नमालिका। रचितामोघवर्षेण सुधियां सदलंकृतिः॥ इस पुस्तकके प्रारंभमें जो निम्न लिखित श्लोक है:प्रणिपत्य वर्धमान प्रश्नोत्तरत्नमालिकां वक्ष्ये । नागनरामरवन्धं देवं देवाधिपं वीरम् ॥
इससे यह भी शंका नहीं रहती कि उन्होंने किस धर्मके विवेकसे राज्यका त्याग किया था ? इससे स्पष्टतः मालूम होता है कि वे महावीर भगवानके अनुयायी थे और उनके सच्चे उपदेशने उनके चित्तपर इतना प्रभाव डाला था कि वे संसारके झगड़ोंसे मुक्त हो कर धर्मका सेवन करने लगे थे।
प्राचीन लेखों और पुस्तकोंमें अमोघवर्षका उल्लेख तीन नामोंसे मिलता है-अमोघवर्ष, नृपतुंगदेव और शर्वदेव । अपनी उदारता
१. प्रश्नोत्तररत्नमालाको अभी तक श्वेताम्वरी भाई विमलदास कविकी बनाई हुई और वैष्णव शंकराचार्यकी वनाई हुई कहते थे, परन्तु ईसाकी ग्यारहवी सदीमें इसका जो तिव्वती भाषामें अनुवाद हुआ था, उसके प्राप्त होनेते अव यह वात निश्चित हो गई है कि, यह राष्ट्रकूटवंशी अमोघवर्षकी ही बनाई हुई है। उक्त तिब्बती अनुवादमें स्पष्ट शब्दोंमें लिखा है कि इसे अमोघवर्ष प्रथमने संस्कृतमें बनाई थी। .