Book Title: Vidwat Ratnamala Part 01
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Mitra Karyalay

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Page 181
________________ . (१६९) चादार्थी विचराम्यहं नरपते शार्दूलविक्रीडितम् ।। अवटुतटमटति झटिति स्फुटचटुवाचाटधूर्जटेर्जिह्वा वादिनि समन्तभद्रे स्थितवति सति का कथाऽन्येषाम् ।। भावार्थ-निसने भस्मक-व्याधिको भस्म कर दी, पद्मावती देवीने से ऊंचा पद दिया, जिसने अपने मंत्रयुक्तस्तोत्रसे चन्द्रप्रम भगनिकी मूर्ति प्रगट की और जिसके द्वारा कलिकालमें सब ओरसे ल्याणका करनेवाला जैनमार्ग वारवार सब देशोमें विजयशाली आ, वह मुनिसंघका स्वामी समन्तभद्र आचार्य वन्दनीय है। चू०-निसके वादके समय प्रगट हुए सुभाषित श्लोक इस प्रकार हैं:"पहले मैंने पाटलीपुत्र नगर (पटना) में वादकी मेरी बनाई, फिर लवा, सिन्धुदेश, ढक्क (ढाका-बंगाल) काञ्चीपुर और वैदिश मिलसके आसपासका देश ? )में मेरी वनाई । और अब बड़े बड़े द्वान् वीरोंसे भरे हुए इस करहटाक ( कराड जिला सतारा) गरको प्राप्त हुआ हूँ । इस प्रकार हे राजन्, मैं वाद करनेके हेये सिंहके समान इतस्ततः क्रीडा करता फिरता हूं।" " हे राजन्, जिसके आगे स्पष्ट व चतुराईसे चटपट उत्तर देनेवामहादेवकी भी जिह्वा शीघ्र ही अटक जाती है, उस समन्तभद्र वाके उपस्थित होते हुए तेरी सभा और विद्वानोंकी तो कथा ही मल्लिषेण प्रशस्ति एक ऐतिहासिक लेख है, उसमें जो वार्ता लिखी ; वह बहुत कुछ विश्वासके योग्य है। आराधनासार कथाकोशमें लिखे ए चरित्रकी प्रधान २ बातोंका उक्त लेखमें उल्लेख मिलता है,

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