________________
(१५७)
- नागकुमारकाव्य एक. छोटासा पंचसर्गात्मक काव्य है और ५०७ श्लोकोंमें पूर्ण हो गया है । यद्यपि इस ग्रन्यमें कौने अपनी प्रशस्ति नहीं दी है और प्रारंभमें एक जगह अपने मल्लिपेण नामके सिवाय कुछ भी नहीं लिखा है, तो भी प्रत्येक सर्गके अन्तम इत्युभयभापाकविचक्रवर्तिश्रीमल्लिपेणमरिविरचितायां श्रीनागकुमारपञ्चमीकथायां इत्यादि लिखा हुआ है, जिससे जान पड़ता है कि महापुराणके कर्ता मल्लिपेणने ही इसकी रचना की है । इस काव्यके. प्रारंभमें लिखा है कि.. कविमिर्जयदेवायेगः पद्यैर्विनिर्मितम् । .. यत्तदेवास्ति चेदत्र विषमं मन्दमेधसाम् ।।
प्रसिद्धसंस्कृतैर्वाक्यविद्वजनमनोहरम् ।
तन्मया पद्यवन्धेन मल्लिपणेन रच्यते ।। . इससे मालूम होता है कि, मल्लिपेणके पहिले जयदेव आदि कई कवियोंके वनाये हुए गद्य और पद्यमय नागकुमार थे, परन्तु वे कठिन ये इसलिये मल्लिपेणने इसे सरल और प्रसिद्ध संस्कृतमें बनाना उचित समझा, । वास्तवमें यह काव्य वहुत सरल है और साधारण संस्कृत पढ़े हुए इसे सहज ही समझ सकते हैं। . - सज्जनचित्तवल्लभ केवल २५ शार्दूलविक्रीडित श्लोकोंका छोटासा काव्य है। इसमें मुनियोंको वहुत ही प्रभावशाली शब्दों में, उपदेश दिया है कि तुम अपने चरित्रको निर्मल रक्खा, ग्रामके समीप . १. वाहवलिनामके कविने इस काव्यको अनुवाद कनड़ी भाषामें शक संवत् १५०७ में किया है।