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_उत्तरकी ओर जाते जाते मार्गमें उन्हें पौद्रपुर मिला । उक्त . नगरमें एक बड़ी भारी दानशाला थी और उसमें. वुद्ध भिक्षुकोंका इच्छानुसार भोजन मिलता था । यह देखकर स्वामीने वौद्ध साधुका वेष धारण कर लिया और कुछ दिनों वहीं निवास किया । परन्तु
भरपेट भोजन न मिलनेसे वहांसे चल दिया। . . फिर विहार करते करते वे दर्शपुर नगरमें पहुंचे । परन्तु वहांपर वैदिक धर्मकी प्रबलता थी, इसलिये बौद्धवेप छोड़कर स्वामीजी भागवतधर्मीय साधु बन गये । परन्तु वहां भी जो सदावर्तसे भोजन मिलता था, उससे उनके रोगकी शान्ति नहीं हुई, इसलिये दशपुरसे विदा लेनी पड़ी। वहांसे चलकर स्वामीजी वाराणसीमें पहुंचे । उस समय वहां शिवकोटि नामका राजा राज्य करता था । वह बड़ा भारी शिवभक्त था । उसने शिवजीका एक सुविशाल मन्दिर वनवाया था और उसकी पूजा वह शैव ब्राह्मणोंसे पटूरस पक्वान्नके विपुल नैवेद्यसे करवाता था। उस नैवेद्यका ठाटवाट देखकर स्वामीजीतत्काल ही शैवऋषि वन गये । मस्तकपर जटा बढ़ा लिये, कमंडलु रुद्राक्षकी माला आदि उपकरण ले लिये और एक लम्बा चौड़ा त्रिपुंड
१.प्रो. लॅसन और पं० व्यंकटस्वामीके मतसे विहार देशसे मिला हुआ जो बंगालका कुछ भाग है, वह पुंद्रदेश है ओर महाभारतमें भी ऐसा वर्णन है कि अंगदेशसे वंगदेशमें प्रवेश करनेके पहले भीमने पुंद्रदेशीय लोगोंको जीते । इसलिये अंग और बंगके बीचका देश अर्थात् विहार और वंगालके मध्यका देश ही पुद्र है । २. वर्तमान मन्दसौर (मालवा)।