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वंशपुराणके कर्त्ता जिनसेनने हरिवंशपुराण शक संवत् ७०९ में. समाप्त किया है. सो उक्त दो जिनसेन तो महिषेणके पिता हो नहीं सकते हैं; क्योंकि इन दोनोंसे महिषेणका समय दो सौ वर्ष पीछे है, अतः इनके पीछे होनेवाले कोई तीसरे ही जिनसेन इनके पिता होंगे ।
मलिषेणकृत महापुराण बहुत छोटा हैं । केवल दो हजार लोक उसकी संक्षेपतः रचना की गई हैं । परन्तु ग्रन्थ बहुत सुन्दर हैं और उसमें अनेक विषय ऐसे आये हैं जो दूसरे ग्रन्थोंन नहीं हैं । इसकी एक प्रति कोल्हापुरके भट्टारक लक्ष्मीसेनजी के मटमें प्राचीन कानड़ी लिपिनें ताड़स्क्रॅपर दिखी हुई हैं । उसपर इस बातका उल्लेख नहीं है कि वह कर लिखी गई हैं । श्रवगवेगु ब्रह्ममूरिशास्त्रीके भंडार में भी शायद उसकी एक प्रति है ।
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' उभयभाषाकविचक्रवर्ती ने इसमें सन्देह नहीं कि अनेक ग्रन्थोंकी रचना की होगी, परन्तु अभीतक उनके सिर्फ तीन ही ग्रन्थोंका पता लगा है, एक महापुराण जिसका ऊपर उल्लेख हो चुका है, दूसरा नागकुमारकाव्य और तीसरा सज्जनचित्तवल्लभ । ये तीनों ग्रन्थ संस्कृतमें हैं । प्राकृतमें अभीतक आपका कोई भी ग्रन्थ प्राप्त नहीं हुआ है, परन्तु होगा अवश्य । क्योंकि आपने अपनेको संस्कृतके समान प्राकृतका भी कवि कहा है। प्रवचनसारटीका, पंचास्तिकाय-टीका, ज्वालिनीकल, पद्मावतीकल्प, वज्रपंजरविधान, ब्रह्मविद्या और आदिपुराण ये ग्रन्थ भी मल्लिषेणाचार्य के नामसे प्रसिद्ध हैं; परन्तु यह -नहीं कहा जा सकता है कि उनमें से उभयभाषाकविचक्रवर्ती के रचे - हुए कौनसे हैं, और दूसरोंके कौनसे ?