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(७९) शियोंको जो कि सबसे अधिक विद्वान् समझे जाते थे, पास बुला: कर कहा कि यह जो साम्हने सूखा वृक्ष खड़ा है, इसका कान्यंवाणीमें वर्णन करो । तव उन दोनोंमेंसे.पहिलेने कहा-- .
"शुष्कं काष्ठं तिष्ठत्यग्रे।" फिर दूसरेने कहा- . . .
"नीरसतरुरिह विलसतिं पुरतः ।.... - यह दूसरा और कोई नहीं था, गुणभद्रस्वामी थे । इनके सरस उत्तरको सुनकर जिनसेनस्वामीने इन्हींको योग्य समझा में आज्ञा दी कि तुम शेष ग्रन्थको पूर्ण करना.।"
. समकालीन राजाओंका परिचय ।
अमोघवर्षे । .. . जिनसेन और गुणभद्रस्वामीके समयमें जितने राजा हो गये हैं, उन सबमें महाराजा अमोघवर्ष जैनधर्मके परम शृद्धालु सहायक और उन्नायक समझे जाते हैं। जिनसेनस्वामीके ये परम भक्त थे, जैसा कि गुणभद्रस्वामीने लिखा है:
यस्य प्रांशुनखांशुजालविसरद्धारान्तराविर्भव. त्पादाम्भोजरजापिशङ्गमुकुटप्रत्यारत्नद्युतिः । - संस्मर्ता स्वममोघवर्षनृपतिः पूतोऽहमद्येत्यलं . स श्रीमान् जिनसेनपूज्यभगवत्पादो जगन्मङ्गलम् ॥८॥
इसका अभिप्राय यह है कि महाराजा अमोघवर्ष जिनसेनस्वामीके । चरणकमलोंमें मस्तकको रखकर · आपको पवित्र मानते थे और
उनका सदा स्मरण किया करते थे। अमोघवर्षकी वनाई हुई