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लिखा हुआ जान पड़ता है । उसे ग्रन्थ बननेका समय नहीं, किन्तु आचार्यके विद्यमान होनेकां समय समझना चाहिये । शेठजीका भी शायद उसके लिखने में यही अभिप्राय होगा ।
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आचार्यवर्य अमितगति बड़े भारी विद्वान् और कवि थे । उनकी 'असाधारण विद्वत्ताका परिचय पानेके लिये उनके ग्रन्थोंका भलीभांति सऩन करना चाहिये । उनकी रचना सरल और सुखसाध्य होनेपर भी बड़ी गंभीर और मधुर है । संस्कृत भाषापर उनका अच्छा अधिकार था । उन्होंने अपने धर्मपरीक्षा नामके ग्रन्थको जिरो वांचकर लोग मुग्ध हो जाते हैं, केवल दो महीने में रचके तयार किया था । यथा:
अमितगतिरिवेदं स्वस्यमासद्वयेन प्रथितविशदकीर्तिः काव्यमुद्धूतदोषम् ।
धर्मपरीक्षामें कुल श्लोक १९४५ हैं । इतने बड़े उत्तम ग्रन्थको दो महीने में रच डालना, सचमुच ही विलक्षण पांडित्यका काम है ।
संस्कृत - साहित्य में धर्मपरीक्षा अपने ढंगका एक विलक्षण ही ग्रन्थ है । दूसरे धर्मोका एक मनोरंजक कथामें हास्य विनोदके साथ खंडन करनेवाला और अपने धर्मका मंडन करनेवाला शायद ही कोई ग्रन्थ इस श्रेणीका हो । इसके पढ़नेसे यह भी मालूम होता है कि अन्यमतके रामायण महाभारतादि ग्रन्थोंका भी उन्हें पूर्ण परिचय था । क्योंकि उक्त ग्रन्थोंके असंबद्ध लेखोंकी ही इसमें परीक्षा की गई है। वर्त मानके उपन्यास ग्रन्थोंके पढ़नेमें जैसा चित्त लगता छोड़नेको जी नहीं चाहता है, ठीक वही दशा इस
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है, और फिर ग्रन्थको हाथमें