Book Title: Vidwat Ratnamala Part 01
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Mitra Karyalay

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Page 160
________________ ( १४८ ) ने इस प्रकार की है— चौलुक्यचक्रवर्ती जयसिंहकी जो कि सरस्वतीरूपी स्त्रीकी जन्मभूमि थी — विजेता की इस प्रकार डुगडुगी पिटती थी कि हे वाढियो, वादका घमंड छोड़ दो, हे काव्यमर्मज्ञो, तुम अपनी गमकताका गर्व त्याग दो, हे वाचालो, वाचालता छोड़ दो और हे कवियो कोमल मधुर और स्फुट काव्य रचनाका अभिमान त्याग दो । जिसकी हज़ार जिह्वायें हैं वह नागराज पातालमें रहता है और इन्द्रका गुरु जो बृहस्पति है वह स्वर्गलोकमें चला गया है । ये दोनों वाढ़ी उक्तस्थानोंमें जीते रहें । इन्हें छोड़कर यहां कोई वादी नहीं रहा है । बतलाइये, यहां और कौन है ? जो थे वे तो सत्र वलक्षीण हो जानेसे गर्व छोड़कर राजससभामें इस विजयी वादिराजको नमस्कार करते हैं | इत्यादि । राजधानी मेंवादिराजसूरि यह एकीभावस्तोत्रके अन्तमें किसी कविका बनाया हुआ जो श्लोक है, उसे तो पाठकोंने सुना ही होगावादिराजमनु शाब्दिकलोको वादिराजमनुतार्किकसिंहः । वादिराजमनु काव्यकृतस्ते वादिराजमनु भव्यसहायः ॥ “ अर्थात् जितने वैयाकरण हैं, जितने नैयायिक हैं, जितने कविहैं और जितने भव्यसहायक हैं वे सब वादिराजसूरिसे पीछे हैं । भाव. यह कि वादिराजके समान कोई वैयाकरण नैयायिक और कवि नहीं है !

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