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(१५३) गद्यचिन्तामाणि और क्षत्रचूडामणि काव्यके कर्ता वादभिसिंहके विद्यागुरु पुष्पसेन भी वादिराजके समकालीन थे। __महाकवि मल्लिपेण ( उभयभाषाकविचक्रवर्ती ) जिन्होंने कि शक संवत् १६९ में महापुराणकी रचना को है लगभग इसीसमयके अन्यकर्ता हैं। ___ दयापाल मुनि जो कि वादिराजके मतीर्थ थे बड़े भारी विद्वान् थे.। मल्लिपेणप्रशस्तिमें उनकी प्रशंसाके कई पच हैं । स्थानाभावसे हम उन्हें उद्धृत नहीं कर सके । नेमिचन्द्रसिद्धान्त चक्रवर्ती
और कनड़ीके रन्न अभिनवपम्प नयसेन आदि प्रसिद्ध कवि भी लगभग इसी समय हुए हैं । शककी इस दशवीं शताब्दीने जैनियोंमें वीसों विद्वद्रत्न उत्पन्न किये थे।
नोट-इस लेखके लिखनेमें हमें यशोधरचरितकी भूमिकासे और सोलंकियोंके इतिहाससे वहुत सहायता मिली है। अतएव हम दोनों ग्रन्थोंके लेखकोंका हृदयसे उपकार मानते हैं।
१. श्रीयुक्त टी. एस. कुप्पूस्वामी शास्त्रीने यशोधरचरितकी भूमिका लिखा है कि वादीमसिंहका वास्तविक नाम अजितसेन मुनि था । वादीभसिंह उनका एक विशेपण या पदवी थी । यथा मलिपेणप्रशस्ती
सकलभुवनपालानम्रमूर्धाववद्धस्फुरितमुकुटचूडालीढपादारविन्दः ।
मतदखिलवादीभेन्द्रकुम्भप्रभेदी गणभृदजितसेनो भाति वादीभसिंहः । . २. पुष्पसेनमुनि वादिराजके समकालीन होनेसे वादाभसिंहका समय भी एक प्रकारसे निश्चित हो जाता है जो कि पहले अनुमानोंसे सिद्ध किया जाता था।