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दिये हैं । अर्थात् उस समय उनकी अवस्था खूब प्रौढ़ होगी और दीक्षा लिये हुए बहुत कम हुए होंगे; तो चार छह वर्ष ज़रूर हो चुके होंगे । इसके सिवाय यह भी अनुमान होता है कि उन्होंने बालकपनमें ही दीक्षा नहीं ले ली होगी, किन्तु कुछ काल गृहस्थाश्रमका अनुभव करके और फिर उससे विरक्ति लाभ करके ली होगी । धर्मपरीक्षाकी रचनामें उन्होंने जिस प्रकारकी व्यवहारकुश - लता दिखलाई है, और सांसारिक घटनाओंके जैसे उत्तम चित्र खींचे हैं, उन्हें ध्यानस्थ करनेसे यह अच्छी तरहसे विश्वास हो जाता है कि, उन्होंने पहले संसारका भली भांति अनुभव कर लिया होगा । इस तरहसे सुभाषितकी रचनाके समय उनकी अवस्था बहुत कम होगी, तो २५ - ३० वर्षकी होगी अर्थात् उनका जन्म विक्रमसंवत् १०२५ के लगभग हुआ होगा । महाराज मुंज उस समय या तो राज्यारूढ़ होगे, अथवा युवराज होगे । धर्मपरीक्षा वना चुकनेके पश्चात्, आचार्य महाराजने संसारका और कब तक हितसाधन किया, यह उनके अन्यग्रन्थोंसे अथवा उनकी शिप्यपरं - पराके ग्रन्थोंसे जाना जा सकता है । परन्तु खेद है कि, इस समय हमारे पास उक्त दोनों ही साधन नहीं है । धर्मपरीक्षा और सुभाषितके सिवाय श्रावकाचार नामका एक ग्रन्थ और भी प्राप्त है, परन्तु उसमें समयका उल्लेख बिलकुल नहीं है । नहीं कह सकते हैं कि, वह उक्त दों ग्रन्थोंसे पहलेका बना हुआ है, अथवा पीछेका । . 'शेठ हीराचंदजीने रत्नकरंड श्रावकाचारको भूमिकामें उसके बननेका समय वि० संवत् १०९० लिखा है; परन्तु वह अनमानसे
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