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(१२९.) :, और कुछ ही समय पहले भगवन्जिनसेन तथा गुणभद्रमुरि जैसे विद्वान्
हो गये हैं, परन्तु किसीने भी एक दूसरेका उल्लेख नहीं किया है। ___ पाठकोंको मालूम होगा कि, शुभचन्द्राचार्य धाराधीश भोजके समयमें हुए हैं, जो कि वि० सं० १०७८ में राज्यके अधिकारी हुए थे तथा भगवद्गुणभद्रसूरिने उत्तरपुराण वि० संवत् ९९५ में पूर्ण किया था। पूर्वके विद्वानोंके ग्रन्थोंमें परस्परका उल्लेख न रहनेका कारण एक तो यह प्रतीत होता है कि देशभेदके कारण उनका साक्षात् प्रायः बहुत कम होता था, दूसरे उनकी कीर्तिके कारणभूत ग्रन्याका प्रचार दूर देशोंमें तत्काल न हो सकनेसे वे अपनी जीवितावस्थामें प्रसिद्ध भी · नहीं हो पाते थे। इसके सिवाय अन्योंकी प्रशस्तियोंमें वे अपना और अपनी थोड़ीसी गुरुपरम्पराका परिचय मात्र देना वस समझते थे। आजकलके पुस्तक बनानेवालोंके समान आडम्बर वनाना उन्हें नहीं आता था। कीर्तिकी उन्हें आकांक्षा भी नहीं थी. । हमारे यहां एसे सैकड़ों बड़े २ अन्य हैं, जिनके कर्ताओंका कुछ भी पता नहीं है।
श्रीअमितगतिमुनिका गृहस्थावस्थाका क्या नाम था, वे किस कुलमें तथा किस नगरमें उत्पन्न हुए थे, इन वातोंका कुछ भी पता नहीं लगता है, परंतु उनके ग्रन्थोंसे उनके मुनिकुलका भली भांति परिचय मिल जाता है, यह एक संतोषकी बात है । अपने कई
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१. वहुत लोगोंका खयाल है कि मुंजकी राजधानी धारा नगरी थी, परन्तु यह केवल भ्रम है। मुंजकी राजधानी उनमें थी और भोजकी धागमें।
२. उत्तरपुराण वननेके कुछ ही वर्ष पहले भगवजिनसेन विद्यमान थे ।