________________
(१४०) पुष्पपूजा तथा भट्टारकोंमें मयूरपिच्छिके स्थानमें गोपुच्छ रखनेके सिवाय और कोई भेद नहीं जान पड़ता है। दोनों संघके श्रावक एक, दूसरेके मन्दिरोंमें आते जाते हैं, और एक ही आचार विचारसे रहते हैं । क्षुल्लकोंकी वीरचर्या, स्त्रियोंकी दीक्षा, प्रायश्चित्तादि विवादविषयक बातोंका आज कल काम ही नहीं पड़ता है । इसलिये शेप वातोंमें काष्ठासंघ और मूलसंघका एकमत हो मिलकर रहना कुछ आश्चर्यका विषय नहीं है। ___ कुछ भी हो, अर्थात् माथुरसंघ जैनाभास भले ही हो परन्तु श्रीम- मितगतिमुनिके अगाध पांडित्य और उत्कृष्ट कवित्वके विषयमें कुछभी सन्देह नहीं है । इस विषयमें उनकी प्रशंसा करनेमें कोई भी कुंठित नहीं होगा और उनके पवित्र ग्रन्थोंके पठन पाठनका कोई.. भी विरोधी नहीं होगा । संसारमें उनकी कीर्ति यावच्चन्द्रदिवाकरौ स्थिर रहेगी । अलमतिविस्तरेण ।