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है। हा, उसमें जो सन्यासमरण न करनेत्री तथा गोपुच्छ ग्रहण करनेकी बात है वह अवश्य दर्शनमारके कयनो मिती है, और उसका वह अंश है नी सर्वानुमत !
मायुरसंघकी उत्पत्ति। यद्यपि मायुरसंव काष्टावका एक मेड़ है, तयारि उसमें कुछ विशेषता भी है और शायद इसी कारण वह मायुगच्छ न कहलः कर माथुरसंत्र कहा जाता है। एक प्रकारसे यह एक स्वतंत्र संत्र हैं। निसान इसनी उत्सति विषय निनलिखित गाया मिलती है
तची दुसएतीद महुराए माहुराण गुरुणाहो । '
णामेण रामसेणी णिप्पिच्छियं वणियं वेण ॥४१ ।। मान् काष्ठासंवकी उत्पत्तिके वे सौ वर्ष पछि नथुरा नगरी माथुरसंवका प्रवर्तक रामसेन नामका प्रधान मुनि हुमा । उसने बिना पिच्छीक मुनिशा स्वल्प वर्णन किया । अर्थात् उसके मनके अनुसार मुनि विना पिच्छिक मी रह सकता है। । इससे यह मी मान्म होता है कि पांत्र जैनामामाने जो एक निःपिच्छिक जैनामान बनाया है, वह और मायुसंव एक ही है। मायुरसंवना ही दूसरा नान नि:पिच्छिक है।।
मतविरोध। लियोंकी दीक्षा शुल्क लोगोंको वीरचर्या, प्रायश्चित्त आदि विषयामें कष्टावका जो मतमेन है, उससे हम मन्त्री मांति परिचित नहीं