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(१३१) इसका सारांश यह है कि माथुरसंघके मुनियोंमें श्रीवीरसेन नामके एक श्रेष्ठ आचार्य हुए और उनके शिष्योंमें क्रमसे देवसेन, 'अमितगति (प्रथम ) नेमिषेण, और माधवसेन नामके मुनि हुए। अमितगति इन्हीं माधवसेनके शिष्य थे। । - अमितगतिने अपने जिन पूर्व गुरुओंका उल्लेख किया है, उनमें से जहांतक हम जानते हैं, किसीका भी कोई ग्रन्थ अभीतक प्रसिद्धमें नहीं है और न कहींकी रिपोर्ट में उनका कोई पता लगता है।
जिस माथुरसंघमें अमितगतिका अवतार हुआ था, अभीतक हम उससे बहुत कम परिचित हैं। हमारे मूलसंघके जो नदि, सिंह, सेन और देवं ये चार भेद हैं, उनमें माथुरसंघ नहीं है। तव क्या यह इनसे पृथक् कोई पांचवां संघ है, अथवा इन्हींमेंसे किसी एकका नामान्तर है? यह एक प्रश्न उपस्थित होता है।
माथुरसंघ और काष्ठासंघ । माथुरसंघ काष्ठासंघका ही अन्तर्भेद है। काष्ठासंघकी पट्टावलीमें जो कि, श्रीसुरेन्द्रकीर्ति आचार्यकी बनाई हुई है, लिखा है कि. काष्ठासंघो भुवि ख्यातो जानन्ति नूसुरासुराः ।
तत्र गच्छाश्च चत्वारो राजन्ते विश्रुताः क्षितौ ॥ १ ॥
१. मूल संघमें जो अनेक भेद हैं, उनमें शास्त्रविषयक तथा चार विषयक किसी प्रकारका मतभेद नहीं हैं ! केवल संघव्यवस्थाके लिये इनकी स्थापना हुई थी। २. कहीं २ देवसंघ नहीं कहकर वृपमसंघ कहा है। जान पड़ता है, यह देव, संघका ही नामान्तर होगा।