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(१२१) इनमें से धर्मपरीक्षा और सुभाषितरत्नसंदोह ये दो ग्रन्थ तो छपकर प्रकाशित हो चुके हैं और तीसरा श्रावकाचार अनेक स्थानों में मि-लता है। चौथा पंचसंग्रह और पांचवां योगसार प्राभूत ये दोनों ग्रन्थ ईडरके भंडारमें हैं। छठा भावना द्वात्रिंशति' श्रीयुक्त ब्रह्मचारी शीतलप्रसादजीकृत हिन्दी अर्थसहित सामायिकपाठके नामसे छप चुका है । परन्तु शेषके ४ ग्रन्थ अभीतक कहीं प्राप्त नहीं हुए हैं। इन ग्रन्थोंके नाम देखनेसे यह भी विदित होता है कि अमितगति महाराज प्रथमानुयोग चरणानुयोगके समान करणानुयोग और द्रव्यानुयोगके भी असाधारण पंडित थे।
अमितगतिका दूसरा उपलब्ध ग्रन्थ सुभाषितरत्नसंदोह है। "इसमें सांसारिकविषयनिराकरण, मायाहंकारनिराकरण, इन्द्रियनिग्रहोपदेश, स्त्रीगुणदोषविचार, देवनिरूपण आदि बत्तीस प्रकरण हैं और प्रत्येक विषयके वीस २ पच्चीस २ सुभापितश्लोक हैं । सरल संस्कृतमें प्रत्येक विषयका बड़ी सुन्दरतासे निरूपण किया गया है। यह सवका सव ग्रन्थ कंठ करने लायक है।ग्रन्थके अन्तमें ११७ श्लोकोंमें श्रावकधर्मनिरूपण नामका प्रकरण बहुत ही अच्छा है। यदि वह हिन्दी
१. सुभाषितरत्नसंदोह निर्णयसागरकी काव्यमालामें छप चुका है। इसकी संघी पन्नालालजीकी वनाई हुई एक भाषाटीका भी है, जो जयपुरमें हस्तलिखित मिल सकती है, । २, अमितगतिश्रावकाचारकी पंडितवर्य भागचन्द्रकृत भापाटीका अभैतिक छपी नहीं है। .