________________
(१२२)
टीकासहित पृथक् प्रकाशित किया जावे, तो एक छोटासा श्रावकाचार बन सकता है। और श्रावकधर्मका संक्षेपमें परिचय चाहनेवालोंको उपयोगी हो सकता है । यहापर सुभाषितके दश बीस चुने हुए श्लोक उद्धृत करनेकी इच्छा थी, परन्तु स्थानाभावसे इस विचारको छोड़ना पड़ा ।
तीसरा ग्रन्थ श्रावकाचार इस समय हमारे समक्ष उपस्थित नहीं है, परन्तु उसका विषय बतलानेकी पाठकोंको अवश्यकता नहीं है । १३५२ श्लोकोंमें बहुत उत्तमताके साथ श्रावकाचारका स्वरूप वतलाया गया है | प्रचलित श्रावकाचारोंसे यह बहुत ही बड़ा है ।
चौथा ग्रन्थ योगसारमाभृत है । इसका दूसरा नाम अध्यात्म तरंगिणी भी है । इसमें ५५० के करीव अनुष्टुप् श्लोक हैं। जीव,अजीव, आस्रव, बंध, संवर, निर्जरा, मोक्ष, चारित्र, और उपसंहार इस प्रकार नौ अध्याय हैं और प्रायः प्रत्येक अध्यायमें पचास २ श्लोक हैं । अन्तके दो अध्यायोंमें सौ सौके अनुमान श्लोक हैं । विषय नामहीसे प्रगट है। योगियोंको उपर्युक्त विषयोंका ध्यानावस्थामें किस प्रकार चिन्तवन करना चाहिये, बहुत सरल शब्दोंमें इसी - का उपदेश दिया गया है। जो प्रति हमारे देखने में आई वह संवत् - १५५२ की लिखी हुई है और प्रायः शुद्ध है । उसमें आदिके. १० - १२ श्लोक नहीं हैं । एक पत्रका अभाव है । ग्रन्थके अन्तमें ग्रन्थ लिखानेवालोंकी तो बड़ी लम्बी चौड़ी प्रशास्ति लिखी है, परन्तु विषय बहुत
1
१. धर्मपरीक्षाके पिछले दो परिच्छेदों में भी श्रावकाचार उत्तमताके साथ कहा है । उसके २०० के करीव अनुष्टुप् श्लोक'