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(१२०) लेनेसे होती है । अन्तर केवल इतना है कि, उपन्यासोंसे थोड़े समयके लिये मनोरंजन मात्र होता है, और इसके पढ़नेसे धर्ममें दृढ़ता होनेके सिवाय बहुलता प्राप्त होती है । अर्थान्तर-न्यासोंकी और नीतिके खंडश्लोकोंकी इस ग्रन्थमें इतनी अधिकता है कि, यदि कोई उनको अलग चुनकर प्रकाशित करे, तो एक उत्तम पोथी बन सकती है, जिसे धर्मी विधर्मी सव ही विद्वान आदरपूर्वक ग्रहण कर सकते हैं। ___ धर्मपरीक्षा ग्रन्थ कैसा है, इसके लिये हम अधिक कुछ न लिखकर अपने पाठकोंसे उसके एक वार स्वाध्याय करनेका आग्रह करते हैं । यदि श्रीअमितगति महाराजने केवल धर्मपरीक्षा ही रची होती अन्य ग्रन्थ न रचे होते; तो यही एक उनके असाधारण पांडित्यको प्रगट करनेके लिये बस थी।
धर्मपरीक्षाके अतिरिक्त अमितगतिके वनाये हुए निम्नलिखित अन्योंका और भी उल्लेख मिलता है।
१ सुभाषितरत्नसंदोह। ५ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति । २ श्रावकाचार। ६ चन्द्रप्रज्ञप्ति।
३ भावनाद्वात्रिंशति । ७ सार्द्धद्वयद्वीपप्रज्ञप्ति। '४ पंचसंग्रह।
८ व्याख्याप्रज्ञप्ति।
९ योगसारमाभृत । १. धर्मपरीक्षा मूल और भाषासहित छप चुकी है । इसकी दो तीन भाषाटीकायें और भी हैं, जो अभीतक प्रकाश नहीं हुई हैं।