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(११७) अमितगति भी उक्त समयमें वर्तमान थे। वर्तमानमें उनके जो तीन ग्रन्थ मिलते हैं, उनमेंसे धर्मपरीक्षा विक्रम संवत् १०७० में रची गई थी और दूसरा सुभाषितरत्नसंदोह १०५० में बनाया गया था । यथाः
समारूढे पूतत्रिदशवसतिं विक्रमनृपे सहस्रे वर्षाणां प्रभवति हि पञ्चाशदधिके । . समाप्तं पञ्चम्यामवति धरिणी मुञ्जनृपतौ सिते पक्षे पौषे वुधहितमिदं शास्त्रमनघम् ।।
(सुभापित ) संवत्सराणां विगते सहस्रे ससप्ततो विक्रमपार्थिवस्य । . इदं निपिध्यान्यमतं समाप्तं जिनेन्द्रधामितयुक्तिशास्त्रम् ॥
- (धर्मपरीक्षा) संवत् १०५० और १०७० के पहले और पीछेका हमको यद्यपि कुछ वृत्तान्त मालूम नहीं है और न वर्तमानमें उसके जाननेका कोई साधन है, परन्तु अनुमानसे यह कहनेमें कुछ हानि नहीं है कि, विक्रमसंवत्. १०२५ के कुछ पहले श्रीअमितगतिसूरिका जन्म हुआ होगा । क्योंकि सुभाषितरत्नसंदोह जिस समय उन्होंने बनाया है, उस समय उनकी गणना श्रेष्ठ आचरणके धारण करनेवाले मुनियोंमें हो चुकी थी। उन्होंने स्वयं भी सुभाषितके अन्तमें अपने लिये शमदमयममूर्तिः चन्द्रशुभ्रोरुकीतिः आदि विशेषण
१. पौप सुदी ५ विक्रम संवत् १०५० में मुंजराजकी पृथ्वीपर इस पवित्र शास्त्रंकी रचना समाप्त की । २. विक्रमराजाके १०७० संवत्में यह जिनधर्मकी अमित युक्तियोंवाला और अन्य मतोंका निषेध करनेवाला ग्रन्थ समाप्त हुआ।