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जिस प्रकार महाराज विक्रमादित्यको सभामें कालिदास, अमरसिंह आदि नव रत्न थे, सुनते हैं, उसी प्रकार मुंजकी समानें मी अनेक कविरत्न थे । तिलकमंजरीके कर्ता धनपाल, दशरूपकके कर्त्ता घनिक, पिंगलसूत्रवृत्तिके प्रणेता हलायुध, नवसाहसाङ्कचरित कर्ता पद्मगुप्त कवि और हमारे इस लेखके नायक महात्मा अमितगति इन्हीं महाराजके राज्यकालमें हुए हैं । पुण्यात्मा राजाके राज्यमें ही ऐसे विद्वान् अवतार लेते हैं ।
महाराज मुंजका एक दानपत्र विक्रम संवत् १०३६ का प्राप्त हुआ है, जिसपर उनके हाथकी सही है और जिसे उनके प्रधान मंत्री रुद्रादित्यने लिखा था । और विक्रम संवत् १०७८ में तैलंग देशके राजा तैलिपदेवके द्वारा उनकी मृत्यु हुई थी । तथा उनकी मृत्युके पश्चात् भोजमहाराजका राज्याभिषेक हुआ था । यथाः
विक्रमाद्वासरादष्टमुनिव्योमेन्दु ( १०७८ ) संमिते । वर्षे मुखपदे भोजभूपः पट्टे निवेशितः ।
मुंजका राज्याभिषेक का हुआ था, इसका ठीक २ पता नहीं लगता है परन्तु संवत् १०३६ के कुछ वर्ष पहलेसे १०७८ तक वे मालवदेशके राजा रहे हैं, इसमें कुछ सन्देह नहीं हैं । महात्मा
१. श्रीमतुंगाचार्यने प्रवन्धचिन्तामणिमें मुंजको विस्तृत क्या लिखी है । समयानुसार उसे प्रकाश करनेका विचार है । उच व्याा पूर्व भाग विनोदी .. बालकृत भक्तामरचरित्रने भी लिखा है ।