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(१०३) विन्ध्यवर्माका राज्य वि० सं० १२५७-५८ तक समझना चाहिये। विन्ध्यवर्माके पश्चात् सुभटवर्माके राज्यके कमसे कम ७ वर्ष माने जावें, तो अर्जुनदेवके राज्यारंभका समय वि० सं० १२६५ गिनना चाहिये । इसी १२६५ के लगभग आशाधर नाल्छेमें आये होंगे। __ पंडितप्रवर आशाधरकी मृत्यु कब हुई इसके जाननेका कोई उपाय नहीं है। उनके बनाये हुए जो २ ग्रन्थ प्राप्य हैं, उनमें से अनगारधर्मामृतकी भन्यकुमुदचन्द्रिका टीका कार्तिक सुदी ५ सोमवार सं०. १३०० को पूर्ण हुई है । इसके पीछेका उनका कोई भी ग्रन्थ नहीं मिलता है । इस ग्रन्थके बनानेके समय हमारे ख़यालसे पंडितराजकी. आयु ६५-७० वर्षके लगभग होगी। क्योंकि उनका जन्म वि० सं० १२३०-३५ के लगभग सिद्ध किया जा चुका है। इस ग्रन्थकी प्रशस्तिसे यह भी मालूम होता है कि वे उस समय नालछेमें ही थे।
और शायद सं० १२६५ के पश्चात् उन्होंने कभी नालछा छोड़ा भी नहीं। क्योंकि उनके १२६५ और १३०० के मध्यके जो दो ग्रन्थ मिलते हैं, वे भी नालछेके बने हुए हैं। एक वि० सं० १२८५ का
और दूसरा १२९६ का । नालछमें कविवर जैनधर्मका उद्योत करनेके लिये आये थे, फिर क्या प्रतिज्ञा पूरी किये बिना ही चले जाते ? अंत समय तक वे नालछेमें ही रहे और वहीं उन्होंने अपने अपूर्व ग्रन्थोंकी रचना करके जैनधर्मका मस्तक ऊंचा किया । . वर्तमानमें पं०आशाधरके मुख्य तीन ग्रन्थ सुलभ हैं और प्रायः प्रत्येक भंडारमें मिल सकते हैं। एक जिनयज्ञकल्प, दूसरा सागारधर्मा