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(१०६) योऽहन्महाभिषेका विधि मोहतमोरविम् । चके नित्यमहोद्योतं स्नानशास्त्रं जिनेशिनाम् ॥ १६ ॥
(सागारधामृत टीका) भावार्थ-रुद्रट कविके कार्यालंकार ग्रन्थकी टीका वनाई, अरहंत देवका सहस्रनाम टीकासहित वनाया, जिनयज्ञकल्प सटीक बनाया, त्रिषष्टिस्मृतिशास्त्र ( संक्षिप्त ) टीकायुक्त बनाया और नित्यमहोद्योत नामक अभिषेकका ग्रन्थ बनाया, जो भगवान्की अभिषेकपूजाविधि सम्बन्धी अंधकारको नाश करनेके लिये सूर्यके समान है। . वि० संवत् १२९६ के पीछे बने हुए ग्रन्थोंके नाम अनगारधर्मामृतकी टीकामें इस प्रकार मिलते हैं:
राजीमतीविप्रलम्भं नाम नेमीश्वरानुगम् । व्यधात्त खण्डकाव्यं यः स्वयंकृतनिवन्धनम् ॥ १२॥ आदेशापितुरध्यात्मरहस्यं नाम यो व्यधात् । शास्त्रं प्रसन्नगम्भीरं प्रियमारब्धयोगिनाम् ॥ १३ ॥ रत्नत्रयविधानस्य पूजामाहात्म्यवर्णकम् । रत्नत्रयविधानाख्यं शास्त्र वितनुतेस्म यः॥१८॥
(अनगारधर्मामृत टीका ) १., यह भी सोनागिरके भंडारमें है। २. आशाधरकृत मूल सहस्रनाम प्राय: सब जगह मिलता है। बुन्देलखंडमें प्रायः इसी सहस्रनामका प्रचार है। ३.नित्यमहोद्योत बम्बईके भंडारमें है।