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भावार्थ-राजामती विमलंभ नामका खंडकाव्यस्वोपज्ञ टीकासहित बनाया, पिताकी आज्ञासे अध्यात्मरहस्य नामका अन्य बनाया, जो शीघ्र ही समझनेमें आने योग्य, गंभीर और प्रारंमके योगियोंका प्यारा है और रत्नत्रय विधानक पूजा तया माहात्म्यका वर्णन करनेवाला रत्नत्रयविधान नामका अन्य वनाया । ___ संवत् १३०० के पश्चात् यदि पंडितवर्य दश ही वर्ष जीवित रहे होंगे, तो अवश्य ही उनके वनाये हुए और भी बहुतसे अन्य होंगे । ग्रन्यरचना करना ही उन्होंने अपने जीवनका मुख्य कर्तव्य समझा था।
आशाधरके बनाये हुए ग्रंथ बहुत ही अपूर्व हैं।उन सरीखे ग्रन्थकर्ता • बहुत कम हुए हैं । उनका बनाया हुआ सागारधर्मा'मृत ग्रन्य बहुत ही अच्छा है। जिसने एकवार भी इस ग्रन्यका स्वाध्याय किया है, वह इसपर मुग्ध हो गया है । अनगारधर्मामृत और निनयज्ञकल्प ग्रन्थ भी ऐसे ही अपूर्व हैं। हम एक पृथक् लेखमें आशाधरके अन्योंकी आलोचना करनेका प्रयत्न कर रहे हैं। __ अध्यात्मरहम्य कविवरने अपने पिताकी आज्ञासे बनाया । इससे मालूम पड़ता है कि उनके पिता सं० १२९६ के पीछे भी कुछ काल तक जीवित थे। क्योंकि इस ग्रन्थका पहले दो ग्रन्थोंकी प्रशस्तिमें उल्लेख नहीं है; अनगारधर्मामृतकी टीकामें ही उल्लेख
है और उसमें जो अधिक ग्रन्य बतलाये गये हैं, वे १२९६ के ' पीछेके हैं।