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जिस समय पंडितवर्य आशाधर नालछा को गये, उस समय मालवामें महाराज अर्जुनवर्मदेवका राज्य था । अर्जुनवर्मदेवके अभीतक तीन दानपत्र प्राप्त हुए हैं, जिनमेंसे एक विक्रमसंवत् १२६७ का है, जो पिप्पलिया नगरमें है और मंडपदुर्गमें दिया गया था । दूसरा वि० सं० १२७० का भोपाल में है और भृगुकच्छ (भरोंच ) में दिया गया था और तीसरा १२७२ का है, जो अमरेश्वर तीर्थमें दिया गया था और भोपालमें है । इसके पश्चात् अर्जुनदेवके पुत्र देवपालदेव के राजत्वकालका एक शिलालेख हरसोदामें मिला है, जो वि० सं० १२७५ का लिखा हुआ है । इससे मालूम पड़ता है कि १२७२ और १२७५ के बीचमें किसी समय अर्जुनदेवके राज्यका अन्त हुआ था और १२६७ के पहले उनके राज्यका प्रारंभ हुआ था । कत्र प्रारंभ हुआ था, इसका निश्चय करनेके लिये विन्ध्यवर्मा और सुभटवर्मा इन दो राजाओंके राज्यकालके लेख मिलना चाहिये, जो अभीतक हमको प्राप्त नहीं हुए हैं । तो भी ऐसा अनुमान होता है कि १२६७ के अधिकसे अधिक २-३ वर्ष पहले अर्जुनवर्माको राज्य मिला होगा । क्योंकि संवत् १२५० में जब आशाधर धारामें आये थे, तब विन्ध्यवर्माका राज्य था और जब वे विद्वान् हो गये थे, तब भी विन्ध्यवर्माका राज्य था । क्योंकि मंत्री बिल्हणने आशांघरकी विद्वत्ताकी प्रशंसा की थी । यदि आशाधरके विद्याभ्यास ं कालके केवल ७-८ वर्ष गिने जावें, तो
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''१'–अमेरिकन् ओरियंटल सुसाइटीका जनरल भाग ७, पृष्ठ ३२ । २ - अ० ओ० सु० का जनरल भाग ७, पृष्ठ २५ ।