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( ९७ ) नहीं है, किसी दूसरे कविने उसकी रचना की है और यदि विल्हणने की हो, तो वह विद्यापति बिल्हणसे मिन्न होना चाहिये । परन्तु भिन्न होकर भी वह विन्ध्यवर्माका मंत्री विल्हण नहीं हो सकता । क्योंकि उक्त काव्यमें जिस वैरिसिंह राजाकी कन्या शशिकलाके साथ विल्हणका प्रेमसम्बन्ध होना वर्णित है, वह विक्रमसंवत् ९०० के लगभग हुआ है । इससे आशाधरके समयके साथ उसका भी ठीक नहीं बैठ सकता है।
शाङ्घरपद्धति और सूक्तमुक्तावली आदि सुभाषित ग्रन्थों में बिल्हण कविके नामसे बहुतसे श्लोक ऐसे मिलते हैं, जो न तो विद्यापति बिल्हणके विक्रमांकदेवचरित तथा कर्णसुन्दरी नाटिकामें हैं और न विल्हणचरितमें हैं। क्या आश्चर्य है, जो उनके बनानेवाले आशाधरकी प्रशंसा करनेवाले बिल्हण ही हों।। __ आशाधरने अपनी प्रशंसा करनेवाले दो विद्वानोंके नाम और भी लिखे हैं, जिनमेंसे एकका नाम उदयसेन और दूसरेका नाम मदनकीर्ति है । ये दोनों ही दिगम्बर मुनि थे। क्योंकि इनके नामके साथ मुनि और यतिपति विशेषण लगे हुए हैं । देखिये, उदयसेन . क्या कहते हैं:
१. कर्णसुंदरीनाटिकाके मंगलाचरणमें जिनदेवको नमस्कार किया गया है । इसका कारण यह नहीं है कि विद्यापति विल्हण जैनी थे । किन्तु उक्त नाटिका अणहिलपाटनके राजा कके जैन मंत्री. सम्पत्करके वनवाये हुए आदिनाथ भगवान्के यात्रामहोत्सवपर खेलनेके लिये वनाई गई थी, इसलिये उसमें जिनदे
को नमस्कार करना ही उन्होंने उचित समझा होगा । पीछेसे अपने इष्टदेव शि'पार्वताको भी नमस्कार किया है। .